Book Title: Nyayamanjari Part 02
Author(s): K S Vardacharya
Publisher: Oriental Research Institute
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632 347
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योन्यः स एव यो न जानाति योऽर्थः प्रतीयते योऽसावस्माक यो हि येन यौं बतस्त्वेक यः प्रवृत्त्यनु
332 639
68 602 127
32 444
13 335 287 677
50 451 348 516 431 148 100
28 294
यस्संतानो यस्व प्रवृत्ति यागदानाद्यनु ‘या च भूभिर्विक
या तु मुण्डित यागेव हि यादृग्यज्ञो बलि याशित व्यक्त्यमि या महद्भिरपि यावज्जीवं सुख यावतां ग्रहणो यावदात्मगुण यावतो यादृशा यावद्योग्यत्वमा थावांश्च क्वश्चित युक्तं च नैव युक्तं दधना युक्तस्तस्मात् युगपन्ननु युगपन्नास्य . ये चेह धृत्ती ये चत्वारः ये तु स्वप्रति येन स्वाथ वि येनाक्षर येनारमतान . येनान्वितामि ये पुनः कल्पिता ये व्याकरणसं येषामर्थषु ये हि रागादयो योगो विशेष
रतमतिरभूत् रसनस्य विकार रागद्वेषादयो रागादि प्रेर्यमाणी राजा तु गहरे रुपभेदविरो रुपमन्यस्थ रुपस्य न ह्यमि रुपादिषु स्वत रुपान्तरण
359 291 266 444 199 318 506 480 291 260
165 632
60 125
36 446 621
67
'55
692 444 63 64 260
64 442 575
लक्षितव्यवित लक्ष्याभावाद लब्धात्मनरतु लिङ्गताकथन लिङ्गदर्शन लिङ्गिप्रमिति लिङ्गादि अति लोकयात्रा स्थिरै लोकवेदविहित
567 . 323 293 322 294 130 342 642
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