Book Title: Nyayamanjari Part 02
Author(s): K S Vardacharya
Publisher: Oriental Research Institute

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Page 779
________________ 26 न्यायार्जितधन न्यायोङ्गागभीर न्यूनाधिकत्व 448 718 380 127 115 127 177 511 217 296 594 586 439 634 557 59 218 12 205 201 429 565 315 363 . 61 101 . 219 393 नियोज्यमात्राफ नियोज्यस्तावत् नियोज्यःस्वर्ग: निरंशस्त्वस्ति तिरन्वयविना निरपेक्षे प्रयोग निराश्रयेषु निर्णये तु स निर्णये स्वतरः निर्वाणादि-दा निर्विकल्पक निविण्णस्य च निवृत्तिर्गम्यते. निश्चीयले घटा निःश्रेयसोप निषेध्या द्विष. तिप्कृष्ट न च नीलाभावा विना . नील ऽर्थोयं नूनमभ्युपगन्त नून मेष न जानाति. नृबुद्धिप्रभवैव नेदीयानेषु नेह जाते. नेहा गतास्मो नैकन विशत; नैतत् सम्बन्ध नैवं खण्डाय नव गौःशुक्ल नोत्तरस्य च नोत्तो ज्ञानवान् नोपलभे शब्दस्य 210 51 310 69 8c 503 43 पक्षादौ वृत्ति पक्षाभासादयो पदं तद्वन्तमे पदं पदान्तरं पंदं प्रयुज्यते पदं वर्णसम्हो पदादपि तदा पदात् प्रभृति पदात् प्रभृति या पदानां दर्शिता पदाभिधेयार्थ पदार्थसङ्करश्चैव पदार्थस्ताव देता पदार्थानां तु . पदार्थाः किल पदार्थोपि तथैव परपक्षान् प्रति परस्परपरि परस्परविरो परार्थवादवा परिवाटप्रभू परिहत्य दुःख परीक्षाविषयो परीक्षित हि परो मद्चनादेव पश्यतीति तु 128 201 ' 14 659 118 521 37 21 135 309 22 ..33 330 575 80 124 510 496 594 313 63 269 269 668 551 184

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