Book Title: Nyayamanjari Part 02
Author(s): K S Vardacharya
Publisher: Oriental Research Institute
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अपि वा वस्तुत. अपेक्षतेऽसौ अपेक्षतेश अपोद्धृत्यैव अपोहो यदि अप्लेजोमरुतां अप्रातिपदिक अप्रयोजक अप्रामाण्यमतश्च अमिधात्री मता अभिधानक्रिया अभिधानक्रियव अमिधेय तु अभिधेयस्य अभिन्न एवा अभियुक्तैस्तु अभिव्यक्तिस्तु अभिव्यक्तिमत अभेद पक्षे क्षण अभेद त्ति प्रत्यक्ष अमुनव प्रसङ्गेन अनु अन्नपि अमूल तत्त्वज्ञाः अयम य पदस्यार्थ अयस पथि भयोगत्वेन अर्थप्रतिरत: अर्थव धातु अर्थ नेक अर्थस्व न बुद्धेः अर्थेन रज्यमान अर्थ हिसति
439 8b
13 .346 342 454 294 307 277 158 495 435 115 445 . 266
209 "266
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अर्हत्वक्षेऽपि अवभाति हि अवस्तुविषया अवस्था एवैताः अवास्तवत्त्वे अविद्यातृष्णे अविनाभावग्रहण अविनाशिस्वभाव अविभावता हि अविभागस्य अविभागोऽपि अविरलरावल अवैधत्वं प्रपद्येत अशक्येथें वृथा . अशरीररश्च नैवात्मा अशाब्दत्वं च अशेषदुःखोपरमः अश्वधीः शाबलेयादौ असङ्कीर्णस्वभाव असत्त्वमन्यत् असत्यपि महे असत्यस्मिन् असत्याद्यदि असत्त्वे च नि असन्दिग्धं च असमञ्जस असमर्थात्समु असाधनाङ्ग असौ तरल असौ विभाग अस्त्येकेन्द्रिय अस्थीनि पित्त
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