Book Title: Nyayamanjari Part 02
Author(s): K S Vardacharya
Publisher: Oriental Research Institute
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कफाधिक्य तु कारणांशेऽपि कर्कादिकार्या कर्तृप्रयोज्यता कर्तुरीत्सिततम कर्तृसंख्याप्रती कर्मणां च फलानां कर्मणां ननु कर्मणां शास्तो कर्मानुवृत्ति कर्तुं शक्नोति कर्म तूत्तर कर्म त्वंग कर्मसन्तानि कर्म युत्तर कललादिदशायां कल्पनायास्तु कश्चित्प्रत्ययो . कश्चि वेत्तु कश्मलोत्तर कष्ट मीमांस करत हे विद्वन्मति कस्तान् शमयितु कस्म दगोनिवृ कस्यान्तरित कार्यकारणभावो कालान्तरे च कार्यात्मताऽपि कांचिकाधुपयोगे कार्य न नः कालन्यपरीत कार्य चेदवग
कार्यकारणभावो कार्यकारणभावो कार्यकारण कार्पासराग कार्यकारणयो कार्योपभोग कारणस्य कार्या कार्या काम चिरं कार्य चेन्नाव कार्याण्येकेन किंच नांगी किंच प्रत्यक्ष किंचान्विताधी किं तदा न. किं न भक्षयि किं पुनः श्येन किं वा न शम किन्तु नैवाद्य किन्तु युक्तिपरीक्षा किन्तु व्याप्ति किन्तु स्वहेतोः किन्त्वबाधित वियन्तः कीदृशाः कियद्यापि न किभि ज्ञान किमिदमनि किमिदानीम् किमन्तः कीदृशाः किल द्रव्यादि किल यदहम किमनेनापशद्ध
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