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________________ 16 450 343 129 444 11 293 242 85 444 357 343 343 344 347 357 363 1443 329 318 343 357 344 389 . 532 460 343 533 344 51 124 512 510 कफाधिक्य तु कारणांशेऽपि कर्कादिकार्या कर्तृप्रयोज्यता कर्तुरीत्सिततम कर्तृसंख्याप्रती कर्मणां च फलानां कर्मणां ननु कर्मणां शास्तो कर्मानुवृत्ति कर्तुं शक्नोति कर्म तूत्तर कर्म त्वंग कर्मसन्तानि कर्म युत्तर कललादिदशायां कल्पनायास्तु कश्चित्प्रत्ययो . कश्चि वेत्तु कश्मलोत्तर कष्ट मीमांस करत हे विद्वन्मति कस्तान् शमयितु कस्म दगोनिवृ कस्यान्तरित कार्यकारणभावो कालान्तरे च कार्यात्मताऽपि कांचिकाधुपयोगे कार्य न नः कालन्यपरीत कार्य चेदवग कार्यकारणभावो कार्यकारणभावो कार्यकारण कार्पासराग कार्यकारणयो कार्योपभोग कारणस्य कार्या कार्या काम चिरं कार्य चेन्नाव कार्याण्येकेन किंच नांगी किंच प्रत्यक्ष किंचान्विताधी किं तदा न. किं न भक्षयि किं पुनः श्येन किं वा न शम किन्तु नैवाद्य किन्तु युक्तिपरीक्षा किन्तु व्याप्ति किन्तु स्वहेतोः किन्त्वबाधित वियन्तः कीदृशाः कियद्यापि न किभि ज्ञान किमिदमनि किमिदानीम् किमन्तः कीदृशाः किल द्रव्यादि किल यदहम किमनेनापशद्ध 641 129 510 8-e 9 551 37 551 559 677 211 199 442 38 57 60 126 130 285 317 551 313 300 670 147 148 294 270 309 347 450 329
SR No.002266
Book TitleNyayamanjari Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK S Vardacharya
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1983
Total Pages794
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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