Book Title: Nyayamanjari Part 02
Author(s): K S Vardacharya
Publisher: Oriental Research Institute

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Page 767
________________ इथे सत्यपि इत्यन्विताभिधा इत्यर्थरूपरहित इत्यात्मलक्षण इत्यारब्धोपकारः इत्युदाहृतमि इत्येकपद इदं च देहादित इदं तु सिद्धयति इदं सुखमिति इदमप्यपरं इदमर्थ मात्मदर्शन इमाश्वसिद्धान्त इयं सा दुःखानां इयतां प्रत्यभि इह सर्वात्मनो इहाण्यानीय रात् उक्त हि नानु उक्तानामपि उक्त ता उच्छिन्नभोग उच्यते केवला उत्तरचया उ 542 492 212 496 295 583 603 124 293 128 276 38 639 521 550 424 334 451 36 379 9 210 215 431 64 456 14 उत्तिष्ठ भिक्षो उत्पत्तौ खलु उद्धृत्य सौरभ उन्नामो न तु उपलक्षणमभि उपलब्ध्यव्यव उपसर्गनिपात उपसर्गवशात् उपसर्गाः किं उपादाने तु उपादानस्वरूपो उपादेयस्तु उपादेयोऽप उपाय विरहे उपेयतामेष उपेषि परलोक उभयत्रापि उभाभ्यां न व उष्णो न तेज: ऊर्मिषट्क ऊ एकच न समा एकत्र संघट एकदेशेन ए एक हि वस्तुन एक एव हि कालो एकत्र देशे 342 404 235 324 51 317 67 67. 68 402 343 265 265 501 476 343 129 308 634 431 9 37 535 309 -581 7

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