Book Title: Nyayamanjari Part 02
Author(s): K S Vardacharya
Publisher: Oriental Research Institute

Previous | Next

Page 762
________________ 476 689 47 25 449 24 563 226 47 40 56 485 47 दिवततेऽर्थ विस्पष्टश्चाक्ष व्यात्याकृति व्यख्यातारः शब्दब्रह्मणि शब्दे प्रयत्न षट्केन युगपत् संख्यैकान्ता संसरति बध्यते । सक्तवो नोप सद्भावव्यतिरेक समवायिनः सर्ववस्तुषु . . सर्वेषां सवि स संसद्युच्यते स हि दृष्टान्त सहोपलंभ . 189 148 575 476 391 464 167 54 80 449 650 687 494 सात्मीभावात्तु साधकतमं साधयं यदि साधुभिर्भाषणे सामान्य तश्च सामान्यशब्द सामान्यांश सास्नादि सामान्यान्य सुप्तिङन्त सूत्रकर्ता भवि सोऽपि पर्यनु स्मरणादभिषला स्वर्गः स्वतन्त्र स्वव्यापारे हि स्वाध्यायोऽध्ये स्वाभाविकीमविद्यां हविषा कृष्ण 4 718 151 139 80 94 463 474 451

Loading...

Page Navigation
1 ... 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794