Book Title: Nyaya Dipika Author(s): Dharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 6
________________ संस्कृत टिप्पण लिख रहे हैं जो समाप्तिके करीब है और साथमें हिन्दी अनुवाद भी लिख रहे हैं । अतः ऐसे उपयोगी ग्रन्थको वीरसेवामन्दिरग्रन्थमालामें प्रकाशित करनेका विचार स्थिर हुआ । उस समय इस ग्रन्थ का कुल तखमीना १२ फार्म (१६२ पेज) के लगभग था और आज यह २४ फार्म (३८४ पेज) के रूपमें पाठकोंके सामने उपस्थित है। इत तरह धारणासे ग्रन्थका आकार प्रायः दुगना हो गया है। इसका प्रधान कारण तय्यार ग्रन्थमें बादको कितना ही संशोधन, परिवर्तन तथा परिवर्धन किया जाना, तुलनात्मक टिप्पण-जैसे कुछ विशिष्ट परिशिष्टोंका साथमें लगाया जाना और प्रस्तावनाका आशासे अधिक लम्बा हो जाना है इन सबसे जहाँ ग्रन्थका विस्तार बढ़ा है वहाँ उसकी उपयोगितामें भी वृद्धि हुई है। इस ग्रन्थकी तैयारीमें कोठियाजीको बहुत कुछ परिश्रम उठाना पड़ा है, छपाईका काम अपनी देखरेख में इच्छानुकूल शुद्धतापूर्वक शीघ्र करानेके लिये देहली रहना पड़ा है और प्रूफरीडिंगका सारा भार अकेले ही वहन करना पड़ा है। इस सब काममें वीरसेवा-मन्दिर-सम्बन्धी प्रायः ८-६ महीनेका अधिकांश समय ही उनका नहीं लगा बल्कि बहुतसा निजी समय भी खर्च हुआ है और तब कहीं जाकर यह ग्रन्थ इस रूपमें प्रस्तुत हो सका है । मुझे यह देखकर सन्तोष है कि कोठियाजीको इस ग्रन्थरत्नके प्रति जैसा कुछ सहज अनुराग और आकर्षण था उसके अनुरूप ही वे ग्रन्थ के इस संस्करणको प्रस्तुत करने में समर्थ होसके हैं, और इसपर उन्होंने स्वयं ही अपने 'सम्पादकीय' में बड़ी प्रसन्नता व्यक्त की है। अपनी इस कृतिके लिये आप अवश्य समाजके धन्यवादपात्र हैं। _ अन्तमें कुछ अनिवार्य कारणवश ग्रन्थके प्रकाशन में जो बिलम्ब हुआ है उसके लिये मैं पाठकोंसे क्षमा चाहता हूँ । आशा है वे प्रस्तुत संस्करण की उपयोगिताको देखते हुए उसे क्षमा करेंगे। देहली जुगलकिशोर मुख्तार १८ मई १९४५ । संस्थापक 'वीरसेवामन्दिर'Page Navigation
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