Book Title: Niyamsara
Author(s): Kundkundacharya, Himmatlal Jethalal Shah
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 7
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नमः परमागमश्रीनियमसाराय * प्रकाशकीय निवेदन * (चतुर्थ संस्करण ) प्रवर्तमानतीर्थनेता सर्वज्ञवीतराग भगवान श्री महावीरस्वामीकी ॐकारस्वरूप दिव्य देशनासे प्रवाहित और गणधरदेव श्री गौतमस्वामी आदि गरूपरम्परा द्वारा प्राप्त शद्ध तिप्रधान परमपावन अध्यात्मप्रवाहको झेलकर, तथा जम्बू-पूर्वनिदेहक्षेत्रस्थ जीवन्तस्वामी श्री सीमन्धर जिनवरकी प्रत्यक्ष वन्दना एवं देशनाश्रवणसे पुष्ट कर, उसे श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवने समयसार आदि परमागमरूप भाजनोंमें संगृहीत कर अध्यात्मतत्त्वरसिक जगत पर महान उपकार किया है। ___ अध्यात्मश्रुतलब्धिधर महर्षि श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव द्वारा प्रणीत जो अनेक रचनाएँ उपलब्ध हैं उनमें श्री समयसार, श्री प्रवचनसार, श्री पञ्चास्तिकायसंग्रह, श्री नियमसार और श्री अष्टप्राभूत -- ये पाँच परमागम मुख्य हैं । ये पाँचों परमागम हमारे ट्रस्ट द्वारा गुजराती एवं हिन्दी भाषामें अनेक बार प्रकाशित हो चुके हैं । टीकाकार मुनिवर श्री पद्मपभमलधारिदेवकी 'तात्पर्यवृत्ति' टीका नियमसार' के, अध्यात्मरसिक विद्वान् श्री हिम्मतलाल जेठालाल शाह कृत गुजराती अनुवादके हिन्दी रूपान्तरका यह चतुर्थ संस्करण अध्यात्मविद्याप्रेमी जिज्ञासुओंके हाथमें प्रस्तुत करते हुए आनन्द अनुभूत होता है । श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेवके 'प्राभृतत्रय' ( समयसार- प्रवचनसार- पञ्चास्तिकायसंग्रह ) की तुलनामें इस ‘नियमसार' शास्त्रकी बहुत कम प्रसिद्धि थी। इसकी बहुमुखी प्रसिद्धिका श्रेय श्री कुन्दकुन्दभारतीके परमोपासक, अध्यात्मयुगप्रवर्तक, परमोपकारी पूज्य सद्गुरूदेव श्री कानजीस्वामीको है। प्रथम यह शास्त्र संस्कृत टीका एवं ब्र० श्री सीतलप्रसादजी कृत हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित हुआ था। उस पर पूज्य गुरूदेवश्रीने वि० सं० १९९९में सोनगढ़में प्रवचन किये। उस समय उनकी तीक्ष्ण गहरी दृष्टिने तन्निहित अति गम्भीर भावोंको परख लिया . . . और ऐसा महिमावन्त परमागम यदि गुजराती भाषामें अनुवादित होकर शीघ्र प्रकाशित हो जाये तो जिज्ञासुओंको बहुत लाभ हों ऐसी उनके हृदयमें भावना जगी। प्रशममूर्ति पूज्य बहिनश्री चम्पाबहिनके भाई विद्वान श्री हिम्मतभाईको पुज्य गरूदेवने नियमसारका गजराती गद्यपद्यानवाद करनेकी कृपाभीनी प्रेरणा दी। अध्यात्मरसिक श्री हिम्मतभाईने पूज्य गुरूदेवश्रीकी भावनाको झेलकर, समयसार एवं प्रवचनसारकी तरह, अल्प समयमें यह अनुवाद कार्य सुचारूतया सम्पन्न किया। गुजराती अनुवाद प्रकाशित होनेके पश्चात पूज्य गुरूदेवने इस नियमसार परमागमशास्त्र पर अनेक बार प्रवचन दिये और अध्यात्मप्रेमी समाजके समक्ष उसके परमपारिणामिकभावप्रधान गहन रहस्योंका उद्घाटन किया। इस प्रकार पूज्य गुरूदेवश्रीके द्वारा इसकी अधिक प्रसिद्धि हुई। वास्तवमें इस शताब्दीमें अध्यात्मरूचिके नवयुगका प्रवर्तन कर मुमुक्षुसमाज पर पूज्य गुरूदेवने असाधारण महान उपकार किया है। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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