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यह अनुवाद करनेका महान सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ वह मेरे लिये अत्यन्त हर्षका कारण है। परम पूज्य सद्गुरुदेवके आश्रयमें इस गहन शास्त्रका अनुवाद हुआ है। परमोपकारी सद्गुरुदेवके पवित्र जीवनके प्रत्यक्ष परिचय बिना तथा उनके आध्यात्मिक उपदेश बिना इस पामरको जिनवाणीके प्रति लेशमात्र भक्ति या श्रद्धा कहाँसे प्रकट होती, भगवान कुन्दकुन्दाचार्यदेव और उनके शास्त्रोंकी लेश भी महिमा कहाँसे आती तथा उन शास्त्रोंका अर्थ खोलनेकी लेश भी शक्ति कहाँ से प्राप्त होती ? इस प्रकार अनुवादकी समस्त शक्तिका मूल श्री सद्गुरुदेव ही होनेसे वास्तवमें तो सद्गुरुदेवकी अमृतवाणीका स्त्रोत ही
- उनके द्वारा प्राप्त हुआ उपदेश ही- --- यथाकाल इस अनुवादके रूपमें परिणमित हुआ है। जिनके द्वारा सिंचित शक्तिसे तथा जिनकी उष्मासे मैंने इस गहन शास्त्रको अनूदित करनेका साहस किया था और जिनकी कृपासे वह निर्विघ्न समाप्त हुआ है उन पूज्य परमोपकारी सद्गुरुदेव ( श्री कानजीस्वामी) के चरणारविन्दमें अत्यन्त भक्तिभावसे वन्दन करता हूँ।
परमपूज्य बहिनश्री चम्पाबहिनके प्रति भी इस अनुवादकी पूर्णाहूति करते हुए, उपकारवशताकी उग्र भावनाका अनुभव हो रहा है। जिनके पवित्र जीवन और बोध इस पामरको श्री नियमसारके प्रति, नियमसारके महान् कर्त्ताके प्रति और नियमसारमें उपदेशित वीतरागविज्ञानके प्रति बहुमानवृद्धिके विशिष्ट निमित्त हुए हैं, ऐसी उन परमपूज्य बहिनश्रीके चरणकमलमें यह हृदय नमन करता है।
इस अनुवादमें अनेक सज्जनोंने हार्दिक सहायता की है। माननीय श्री वकील रामजीभाई माणेकचन्द दोशीने अपने व्यस्त धार्मिक व्यवसायोंमेंसे समय निकाल कर सम्पूर्ण अनुवादका सूक्ष्मतासे अवलोकन करके यथोचित सूचनाएँ दी हैं और अनुवादमें आनेवाली छोटी-बड़ी कठिनाईयोंका अपने विशाल शास्त्रज्ञानसे निराकरण कर दिया है। भाई श्री खीमचन्द जेठालाल सेठने भी अनुवादका अधिकांश बड़ी तत्परतासे जांच लिया है और अपने संस्कृत भाषाके तथा शास्त्रज्ञानके आधार पर उपयोगी सूचनाएँ दी हैं । बालबह्मचारी भाई श्री चन्दुलाल खीमचन्द झोबालियाने भी सम्पूर्ण अनुवाद अति सूक्ष्मतासे देखकर बड़ी उपयोगी सूचनाएँ दी हैं, हस्तलिखित प्रतियोंके आधारपर संस्कृत टीका सुधार दी है, शुद्धिपत्र, अनुक्रमणिका, गाथासूची, कलशसूची आदि तैयार किये हैं । तथा प्रूफ संशोधन किया है; इस प्रकार उन्होंने बड़े परिश्रम और सावधानीपूर्वक सर्वतोमुखी सहायता दी है। किशनगढ़निवासी श्री पं. महेन्द्रकुमारजी पाटनीने संस्कृत टीकामें आनेवाले श्लोकोंके छन्दोंके नाम लिख भेजे हैं। इन सब महानुभावोंका मैं अन्तःकरणपूर्वक आभार मानता हूँ। इनकी हार्दिक सहायताके बिना इस अनुवादमें अनेक न्यूनताएँ रह जातीं। इनके अतिरिक्त अन्य जिन-जिन भाइयोंने इस कार्यमें सहायता दी है उन सबका मैं ऋणी हूँ ।
यह अनुवाद मैंने नियमसारके प्रति अपनी भक्तिसे तथा गुरुदेवकी प्रेरणासे प्रेरित होकर निजकल्याणके हेतु, भवभयसे डरते-डरते किया है। अनुवाद करते हुए मैंने इस बातकी यथाशक्ति सावधानी रखी है कि शास्त्रके मूल आशयोंमें कहीं फेरफार न हो जाये। तथापि अल्पज्ञताके कारण किञ्चित् भी आशय-परिवर्तन हुआ हो अथवा कोई त्रुटियाँ रह गई हो तो उसके लिये मैं शास्त्रकार श्री कुन्दकुन्दाचार्यभगवान, टीकाकार श्री
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