Book Title: Niyamsara Author(s): Kundkundacharya, Himmatlal Jethalal Shah Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust View full book textPage 8
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पूज्य गुरूदेवश्रीके पुनीत प्रतापसे ही जैन अध्यात्मश्रुतके अनेक परमागमरत्न मुमुक्षुजगतको प्राप्त हुए हैं। यह संस्करण जिसका हिन्दी रूपान्तर है वह (नियमसार परमागमका) गुजराती गद्यपद्यानुवादरूप महा कार्य श्री समयसार आदिके गुजराती गद्यपद्यानुवादकी भाँति, जिनने सम्पन्न किया है वे भाईश्री हिम्मतलालभाई जेठालाल शाह अध्यात्मरसिक विद्वान् होनेके अतिरिक्त गम्भीर, वैराग्यशाली, शान्त एवं विवेकी सज्जन हैं तथा उनमें अध्यात्मरसभर मधुर कवित्व भी है। मूल शास्त्रकार आचार्यभगवन्त एवं संस्कृत टीकाकार मुनिभगवन्तके हृदयके गहरे भावोंकी गम्भीरताको सम्पूर्णतया सुरक्षित रखकर उन्होंने यह शब्दशः अनुवाद किया है। जहाँ आवश्यकता लगी वहाँ पदटिप्पण या कोष्ठक द्वारा स्पष्टता की है। तदतिरिक्त मूल प्राकृतभाषाबद्ध गाथासूत्रोंका भावसभर मधुर गुजराती पद्यानुवाद भी किया है। इस प्रकार पूज्य गुरूदेवके कृपापूर्ण प्रेरणाप्रतापसे भगवत्कन्दकन्दाचार्यदेवके समयसार, प्रवचनसार, नियमसार. पंचास्तिकायसंगह आदि उत्तमोत्तम शास्त्रोंके अनुवादका परम सौभाग्य उनको प्राप्त हुआ इसलिये वे सचमुच अभिन्दनीय हैं। नियमसारका यह गुजराती अनुवाद सर्वांगसुन्दर बना है। पूज्य गुरूदेवकी प्रेरणा झेलकर, अत्यन्त परिश्रमपूर्वक ऐसा सुन्दर अनुवाद कर देनेके बदल भाईश्री हिम्मतलालभाईकी यह संस्था अतीव ऋणी है। यह अनुवाद अमूल्य है, क्योंकि मात्र, पूज्य गुरूदेव एवं जिनवाणीमाताके प्रति परमभक्तिसे प्रेरित होकर अपनी अध्यात्म-रसिकताके द्वारा अत्यन्त निःस्पृहतापूर्वक सम्पन्न किये गये इस अनुवादका मूल्य कैसे आँका जा सकता है ? नियमसारके गुजराती अनुवादके गद्यांशका एवं पद्यांशका हिन्दी रूपान्तर अनुक्रमसे श्री मगनलालजी जैन ( सोनगढ़) एवं श्री जुगलकिशोरजी, M.A., साहित्यरत्न (कोटा -राजस्थान) ने सम्पन्न किया है। एतदर्थ संस्था उन दोनों महानुभावोंका आभार मानती है। तदतिरिक्त प्रस्तुत चतुर्थ संस्करणका ‘ऑफसेट ' पद्धतिसे सुन्दर मुद्रण 'किताबघर', राजकोटने कर दिया है, तदर्थ उनके प्रति भी संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है। मुमुक्षु जीव सद्गुरूगमसे अति बहुमानपूर्वक इस परमागमका अभ्यास करके उसके गहन भावोंको आत्मसात् करें और शास्त्रके तात्पर्यभूत परम वीतरागभावको प्राप्त करें --- यही कामना। पौष वदी ८, वि. सं. २०४८, 'कुन्दकुन्द-आचार्यपदारोहण-दिन' ता. २८-१२-९१ साहित्यप्रकाशनसमिति, श्री दि० जैन स्वाध्यायमन्दिर ट्रस्ट , सोनगढ़ – ३६४२५० ( सौराष्ट्र) Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.comPage Navigation
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