Book Title: Niyamsara
Author(s): Kundkundacharya, Himmatlal Jethalal Shah
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 10
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ॐ नमः सद्गुरवे । उपोद्घात [ गुजराती उपोद्घातका हिन्दी रूपान्तर ] भगवान कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत यह 'नियमसार' नामक शास्त्र 'द्वितीय श्रुतस्कन्ध' के सर्वोत्कृष्ट आगमोंमें से एक है। 'द्वितीय श्रुतस्कन्ध' की उत्पत्ति किस प्रकार हुई उसे हम पट्टावलियोंके आधार पर प्रथम संक्षेपमें देखें आजसे २४७७ वर्ष पूर्व इस भरतक्षेत्रकी पुण्यभूमिमें जगतपूज्य परम भट्टारक भगवान श्री महावीरस्वामी मोक्षमार्गका प्रकाश करनेके लिये समस्त पदार्थोंका स्वरूप अपनी सातिशय दिव्यध्वनि द्वारा प्रगट कर रहे थे। उनके निर्वाणके पश्चचात् पाँच श्रुतकेवली हुए, जिनमें अन्तिम श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामी थे। वहां तक तो द्वादशांगशास्त्रकी प्ररूपणासे निश्चयव्यवहारात्मक मोक्षमार्ग यथार्थ प्रवर्तमान रहा। तत्पश्चात् कालदोषके कारण क्रमशः अंगोंके ज्ञानकी व्युच्छित्ति होती गई । इसप्रकार अपार ज्ञानसिन्धुका अधिकांश विच्छिन्न होनेके पश्चात् द्वितीय भद्रबाहुस्वामी आचार्यकी परिपाटीमें दो समर्थ मुनि हुए - - एकका नाम श्री धरसेन आचार्य और दूसरेका नाम श्री गुणधर आचार्य । उनसे प्राप्त हुए ज्ञानके द्वारा उनकी परम्परामें होनेवाले आचार्योंने शास्त्रोंकी रचना की और वीर भगवानके उपदेशका प्रवाह अच्छिन्न रखा। श्री धरसेन आचार्यको आगायणीपूर्वके पंचम वस्तु-अधिकारके महाकर्मप्रकृति नामक चतुर्थ प्राभृतका ज्ञान था । उस ज्ञानामृतमेंसे क्रमानुसार आगे होनेवाले आचार्यों द्वारा षट्खण्डागम, धवल, महाधवल, जयधवल, गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासार आदि शास्त्रोंकी रचना हुई । इसप्रकार प्रथम श्रुतस्कन्धकी उत्पत्ति है। उसमें जीव और कर्मके संयोगसे हुई आत्माकी संसारपर्यायका -- गुणस्थान, मार्गणा आदिका -- वर्णन है, पर्यायार्थिकनयको प्रधान रखकर कथन किया गया है। इस नयको अशुद्धद्रव्यार्थिक भी कहते हैं और अध्यात्मभाषामें अशुद्धनिश्चयनय अथवा व्यवहार कहा जाता है । श्री गुणधर आचार्यको ज्ञानप्रवादपूर्वके दशवें वस्तुके तृतीय प्राभृतका ज्ञान था। उस ज्ञानमेंसे तत्पश्चात् होनेवाले आचार्योंने क्रमशः सिद्धान्तोंकी रचना की। इसप्रकार सर्वज्ञ भगवान महावीरसे चला आ रहा ज्ञान आचार्योंकी परम्परासे भगवान कुन्दकुन्दाचार्यदेवको प्राप्त हुआ। उन्होंने पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, अष्टपाहुड़ आदि शास्त्र Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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