Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher: 25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab

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Page 351
________________ वर्ग-चतुर्थ ] (२७३) [निरयावलिका शिक्षाग्रहण करने योग्य थी, पर सुभद्रा आर्या बच्चों की लीलाओं में इतनी खो चुकी थी कि उसने गुरुणी की आत्म-शुद्धि की बात न मानी। जिस प्रकार रोगी कुपथ्य की ओर ध्यान नहीं देता वही हालत सुभद्रा की थी। उसने गुरुणी के कथन को सुना-अनसुना कर दिया ।।१३।। उस्थानिका-जब शिक्षा देने पर भी सुभद्रा साध्वी पर कोई प्रभाव न पड़ा तब क्या हुआ ? ____ अब उसी के विषय में सूत्रकार कहते हैं :मूल-तएणं ताओ समणीओ निग्गंथीओ भुभदं अज्ज होलेति निदंति खिसंति गरहंति अभिक्खणं अभिक्खणं एयमढं निवारेति । तएणं तीसे सुभद्दाए अज्जाए समणोहिं निग्गंथोहिं होलिज्जमाणीए जाव अभिक्खणं अभिक्खणं एयमढं निवारिज्जमाणीए अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समपज्जित्था-जयाणं अहं अगारवासं वसामि तयाणं अहं अप्पवसा जप्पभिई च णं अहं मुंडा भविता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्ता, तप्पभिई च णं अहं परवसा, पुटिव च समणीओ निग्गंथीओ आति परिजाणेति, इणाणि नो आढाइंति नो परिजाणंति, तं सेयं खल मे कल्लं जाव जलते सव्वयाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिनिक्खमित्ता पाडियक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं जाव जलते सुव्वयाणं अज्जाणं अंतियाओ पडिनिक्खमेइ, पडिनिक्खमित्ता पाडियक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ । तएणं सा सुभद्दा अज्जा अज्जाहिं अणोहट्टिया अणिवारिया सच्छंदमई बहुजणस्स चेडरूवेसु मच्छित्ता जाव अब्भंगणं जाव नत्तिपिवासं च पच्चणुब्भवमाणी विहरइ ॥१४॥ छाया-ततः खलु ताः श्रमण्यो निम्रन्थ्यः सुभद्रामार्या होलन्ति निन्दन्ति खिसन्ति गर्हन्ते अभीक्षणम् २ एतमर्थ निवारयन्ति । तत खलु तस्याः सुभद्राया आर्यायाः श्रमणोभिनिर्ग्रन्थीभिोल्यमानाया यावत् अभीक्ष्णम् २ एतमर्थ निवारयन्त्या अयमेतद्रूप आध्यात्मिको यावत् समुत्पद्यतयदा खल अहम् भगारवासं वसामि तदा खलु अहम् आत्मवशा, यतः प्रभृति च खलु अहं मुण्डा भूत्वा अगारात् अनगारतां प्रवजिता ततः प्रभृति च खलु अहं परवशा, पूर्व च श्रमण्यो निन्थ्य आद्रियन्ते, परिजामन्ति, इदानी नो आद्रियन्ते नो परिजानन्ति, तत् श्रेयः खलु मे कल्ये यावत् ज्वलति सुव्रता

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