Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher: 25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab

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Page 427
________________ वर्ग-पंचम] ___ (३४६) [निरयावलिका - तएणं से कण्हे वासुदेवे मज्जणघरे जाव दुरूढे, अट्ठट्ठमंगलगा, जहा कूणिए, सेयवरचामरहिं उद्धयमाणेहि उद्धयमाणेहिं समुद्दविजयपामोक्खेहि दसारेहिं जाव सत्यवाहप्पभिहिं सद्धि संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव रवेणं बारवईनयरी मज्झं-मज्झेणं, सेसं जहा कणिओ जाव पज्जुवासइ ॥६॥ छाया-ततः खलु तस्यां समुदानिक्यां भेर्या महता महता शब्देन ताडितायां सत्यां समुद्रविजयप्रमुखा दश दशार्हाः, देव्यः पुनर्भणितव्याः, यावद् अनङ्गसेनाप्रमुखानि अनेकानि गणिकासहस्राणि, अन्ये च बहवो राजेश्वर यावत् सार्थवाहप्रभृतयः स्नाता: यावत् कृतप्रायश्चित्ताः सर्वालंकारविभूषिताः यथाविभवऋद्धिस कारसमुदयेन अप्येकके हयगता यावत् पुरुषवागुरापरिक्षिप्ता यत्रैव कृष्णो वासुदेवस्तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य करतल० कृष्णं वासुदेवं जयेन विजयेन वर्द्धयन्ति । ततः खलु कृष्णो वासुदेवः कौटुम्बिकपुरुषानेवमवावीत्-क्षिप्रमेव भो देवानुप्रियाः! आभिषेक्यं हस्तिरत्नं कल्पयध्वम्, हय-गज-रथ प्रवरान् यावत् प्रत्यर्पयन्ति । ततः खलु स कृष्णो वासुदेवो मज्जनगृहे यावद् दुरूढः अष्टाष्टमङ्गलकानि, यथा कूणिकः, श्वेतवरचामररुद्धयमाणः उद्धयमाणः समुद्रविजयप्रमुखैः दशभिर्दशाहवित् सार्थवाहप्रतिभिः सार्ध संपरिवतः सर्वऋद्धया यावत् रवेण यावत् द्वारावतीनगरीमध्यमध्येन शेषं यथा कुणिको यावत् पर्युपासते ।।६।। पदार्थान्वयः-तएणं तीसे सामुदाणियाए भेरीए-उस सामुदानिक भेरी के, . महया-महया सट्टेणं-जोर-जोर की ध्वनियों में, तालियाए समाणीए-बजाए जाने पर, समुद्दविजय पामोक्खा दस दसारा-समुद्र विजय प्रमुख दस दशाह क्षत्रिय, देवीओ भाणियवाओ-जो रुक्मणी आदि देवियाँ भी बतलाई गई हैं (और), जाव अणंगसेणापामोक्खा अणेगा गणिया सहस्सा-और अनंग सेना प्रमुख अनेक सहस्र गणिकायें, अन्ने य बहवे राईसर जाव सस्थवाहप्पाभइयो-राजेश्वर एवं सार्थवाह आदि, हाया जाव पायच्छित्ता-स्नानादि करके तथा प्रायश्चित्त अर्थात् मांगलिक कार्य करके, सव्वालंकारविभूसिया-सभी प्रकार के अलंकारों से विभूषित होकर, जहा विभव-इड्डी-सक्कार समदएणं-अपनी-अपनी समद्धि सत्कार एवं अभ्युदय सूचक वैभव के साथ, अप्पेगइया हयगय या-अनेक घोडों पर और अनेक हाथियों पर सवार होकर, जाव परिस वग्गरापरिक्खिताअपने-अपने दासों को साथ लेकर, जेणेव कण्हे वासदेवे-जहां पर वासुदेक श्री कृष्ण थे, तेणेव उवागच्छंति,-वहीं पर पहुंच जाते हैं, उवागच्छित्ता-और वहां पहुंचकर, करतल०-दोनों

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