Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher: 25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab

View full book text
Previous | Next

Page 439
________________ वर्ग-पंचम] (३६१) [निरयावलिका - मूल --तएणं अरहा अरिठ्ठनेमी अण्णया कयाइं वारवईओ नयरीओ जाव बहिया जणवयविहारं विहरइ । निसढे कुमारे समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ। तएणं से निसढे कुमारे अण्णया कयाई जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव दब्भसंथारोवगए विहर इ । तएणं निसढस्स कुमारस्स पवरत्तावरत्त० धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झिथिए० धन्ना ण ते गामागर जाव संनिवेसा जत्थणं अरहा अरिठ्ठनेमी विहरइ। धन्ना णं ते राईसर जाव सत्थवाहप्पभईओ जेणं अरिमि वंदंति नमसंति जाव पज्जुवासंति, जइ णं अरहा अरिट्ठनेमी पुवाणुपवि० नंदणवणे विह रेज्जा तएणं अहं अरहं अरिट्ठनेमि वंदिज्जा जाव पज्जुवासिज्जा। तएणं अरहा अरिट्ठनेमो निसढस्स कुमारस्स अयमेयारूवं अज्झत्थियं जाव वियाणित्ता अट्ठारसहि समणसहस्सेहिं जाव नंदणवणे उज्जाणे समोसढे । परिसा निग्गया। ... तएणं निसढे कुमारे इमोसे कहाए लद्धठे समाणे हट्ठ चाउग्घंटेणं आसरहेणं निग्गए, जहा जमाली, जाव अम्मापियरो आपुच्छित्ता पव्वइए, अणगारे जाए जाव० गुत्तबंभयारी । तएणं से निसढे अणगारे अरहतो अरिठ्ठनेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमायाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ अहिज्जित्ता बहूइं चउत्थछट्ठ जाव विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई नव वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, बायालीसं भत्ताई अणसणाए छेदेइ, आलोइयपडिक्कंते सामाहिपत्ते अणुपुत्वीए कालगए ॥११॥ , छाया-तता खलु अर्हन् अरिष्टनेमिरन्यदा कदाचित् द्वारावत्यां नगर्या यावत् बहिर्जनपदविहारं विहरति । निषधः कुमारः श्रमणोपासको जातः, अभिगतजीवाजीवो यावद् विहरति । ततः

Loading...

Page Navigation
1 ... 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472