Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher: 25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab

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Page 435
________________ वर्ग - पंचम ] ( ३५७ ) [ निरयावलक है । वे आचार्य, भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य केशी की तरह बहुश्रुत एवं विशाल शिष्य परिवार वाले थे । उनका आगमन नगर के मेघवर्ण उद्यान में हुआ। जैन साधु को बिना आज्ञा लिए किसी स्थान पर ठहरना निषिद्ध है । इसीलिए आचार्य श्री सिद्धार्थ उद्यान पालक की आज्ञा लेकर ही वहां ठहरते हैं ।॥ मूल - तएणं तस्स वीरंगतस्स कुमारस्स उप्पि पासायवरगतस्स महया जणसद्दं च जहा जमाली निग्गओ धम्मं सोच्चा जं नवरं देवाणुपिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि, जहा जमाली तहेव निक्खतो जाव अणगारे जाए जाव गुत्तबंभयारी । तए णं से वीरंगए अणगारे सिद्धत्थाणं आयरियाणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूई जाव चउत्य जाव अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाइं पणयालीसवासाई सामन्नपरियायं पाउणित्ता, दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं सित्ता, सवीस भत्तसयं अणसणाए छेदित्ता, आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे मणोरमे विमाणे देवत्ताए उववन्ने । तत्थणं अत्येगइयाणं देवाणं दस सागरोवमा ठिई पण्णत्ता । तत्थणं वीरंगस्स देवस्स वि दस सागरोवमा ठिई पण्णत्ता । से णं वीरंगए देव ताओ देवलगाओ आउक्खएणं जाव अनंतरं चयं चइत्ता इहेव बारवईए नयरीए बलदेवस्स रन्नो रेवईए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववन्ने । तणं सा रेवई देवी तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सुमिणदंसणं जाव aft पासायवर गए विहरइ । तं एवं खलु वरदत्त ! निसढेणं कुमारेणं अयमेयाख्वा ओराला मणुयइड्डी लद्धा - ३ । पभू णं भंते । निसढे कुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पव्वइत्तए ? हंता पभू । से एवं भंते ! इय बरदत्ते अणगारे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ १० ॥

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