Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher: 25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
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निरयावलिका)
(३२६)
विग-चतुर्थ
जाव जिमियभु नुत्तरकाले सूईभूए निक्खमणमाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! भूयादारियाए पुरिससहस्सवाहिणी सीयं उवट्ठवेह, उवट्ठवित्ता जाव पच्चप्पिणह । तएणं ते जाव पच्चप्पिणंति ॥४॥
छाया-ततः खलु सा भूता दारिका तदेव धार्मिक यान-प्रवरं यावद् दुरोहति, दुरुह्य यौव राजगह नगरं तत्रैवोपागता, राजगहं नगरं मध्यमध्येन यत्रव स्वं गहं तत्रैवोपागता, रथात् प्रत्यवाह्य यौव अम्बापितरौ तत्रैवोपागता, करतल. यथा जामालिः आपच्छति । यथासखं देवानप्रिये ! लतः स सुदर्शनो गाथापतिः विपुल पशनम् ४ उपस्कारयति, मित्रज्ञाति आमन्त्रयति, आमन्त्र्य यावत् ' जिमितभुक्त्युत्तरकाले शुचिभूतो निष्क्रमणमाज्ञाप्य कौटुम्बिक-पुरुषान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादीत्-क्षिप्रमेव भो देवानुप्रियाः ! भूतादारिकार्य पुरुषसहस्रवाहिनीं शिविकामुस्थापयत, उपस्थाप्य० प्रत्यर्पयत ! ततः खलु ते यावत् पत्यर्पयन्ति ।।४।।
पदार्थान्वषः-तएणं सा भूया दारिया-तदनन्तर वह भूता नामक कन्या, तमेव धम्मियं जाणप्पवरं जाव दुरूहइ-अपने उसी धर्म-यात्राओं के लिये निश्चित श्रेष्ठ रथ पर चढ़ी, दुरूहित्ता(और) चढ़ कर, जेणेव रायगिहे नयरे-जहां राजगृह नगर था, तेणेव उवागया-वहीं पर आ गई, रायगिह नयरं मझ मज्झेण-राजगृह नगर के मध्य मार्ग से, जेणेव सए गिहे-जहां पर उसका अपना घर था, तेणेव उवागया-वह अपने उसी घर में आ पहुंची, रहाओ पच्चोरुहित्तारथ से उतर कर, जेणेव अम्पापियरो-जहां पर उसके माता-पिता थे तेणेव उवागया-वह वहीं पर आ गई, करतल०-वह हाथ जोड़कर, जहा जमाली पुच्छइ-जैसे जमाली ने अपने मातापिता से पूछा था वैसे ही वह अपने माता-पिता से पूछती है (आज्ञा देने को प्रार्थना करती है)।
अहासहं देवाणुप्पिए-(तब उसके माता-पिता ने कहा-) देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हारी आत्मा को सुख हो वैसा करो, तएणं से सुदंसणे गाहावई- तदनन्तर वह सुदर्शन गाथापति, विउलं असणं ४-बड़ी मात्रा में खाद्य, पेय आदि पदार्थ बनवाता है, मित्तनाई०-मित्रों एवं अपने जातीय बन्धुओं को बुलवाता है और सब को भोजन से सन्तुष्ट करता है. जाव जिमियभुक्त्युत्तरकाले - सबको भोजन कराने के बाद, सुईभए-पवित्र होकर, निक्खमणमाणित्ता-पुत्री को साध्वीजीवन अपनाने की आज्ञा देकर, कोडुबियपुरुसे-वह समस्त आज्ञाकारी अपने पारिवारिक दासों को, सद्दावेइ -बुलवाता है, सहावित्ता-और बुलवाकर, एवं वयासो-इस प्रकार कहता है, खिप्पामेव देवाणुप्पिया-देवानुप्रियो ! आप लोग शीघ्र ही, भूया दारियाए–मेरी पुत्री भूता के लिये, पुरिस-सहस्स-वाहिणीं-एक हजार पुरुषों के द्वारा उठाई जानेवाली, सोयं उक्वे ह
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