Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher: 25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab

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Page 423
________________ वर्ग - पंचम | मूलार्थ उस द्वारका नगरी के राजा थे, वासुदेव श्री कृष्ण जो कि शासन करते हुए वहां विचरते रहते थे । वे वासुदेव श्री कृष्ण वहां पर समुद्र विजय प्रमुख दस दशार्हो के, बलदेव प्रमुख पांच महान् बीरों के, उग्रसेन प्रमुख सोलह हजार राजाओं के, प्रद्यम्न आदि साढ़े तीन करोड़ कुमारों के साम्ब प्रमुख साठ हजार दुर्दान्त शूरवीरों के, वीरसेन प्रमुख इक्कीस हजार वीरों के, महासेन प्रमुख छप्पन हजार बलशालियों के; रुक्मणी प्रमुख सोलह हजार देवियों के (तथा) अनंग सेना प्रमुख अनेक हजार गणिकाओं के, (और) अनेक राजेश्वरों तलवरों माडम्बिकों सेनापतियों एवं सार्थवाहों आदि के. (तथा), वैताढ्यं पर्वत एवं सागर से मर्यादित दक्षिणी अर्ध भरत के ऊपर आधिपत्य करते हुए वे विचर रहे थे ॥३॥ टीका - द्वारकाधीश श्री कृष्ण के वैभव का इस सूत्र में विस्तृत वर्णन किया गया है ||३|| ( ३४५ ) [ निरयावलिका - मूल तत्थणं बारवईए नयरीए बलदेवे नामं राया होत्या, महया जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ । तस्स णं बलदेवस्स रण्णो रेवई नामं देवी होत्या, सोमाला० जाव विहरइ । तएणं सा रेवई देवी अण्णया काइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि जाव सोहं सुमिणे पासित्ता जं पडिबुद्धा०, एवं सुमिण दंसणपरिकहणं, निसढे नामं कुमारे जाए जाव कलाओ जहा महाबले, पंनासओ दाओ, पण्णासरायकण्णगाणं एगदिवसेण पाणि गिण्हावे, नवरं निसढे नामं जाव उप्पिपासाएं विहरइ ॥ ४ ॥ छाया - तन खलु द्वारावत्यां नगर्यां बलदेवो नाम राजाऽभवत् महता यावद् राज्यं प्रशासद् विहरति । तस्य खलु बलवेवस्य राज्ञो रेवती नाम्नी देव्यभवत्, सुकुमारपाणिपादा यावद् विहरति । ततः खलु सा देवंती देवी अन्यदा कदाचित् तादृशे शयनीये यावत् सिंह स्वप्ने दृष्ट्वा खलु प्रतिबुद्धा एवं स्वप्नदर्शनपरिकथनं निषधो नाम कुमारो जातः, यावत् कला यथा महाबलस्य, पञ्चाशद् वायाः, पञ्चाशव्राजकन्यकानामेकविवसेन पाणि ग्राहयति, नवरं निषधो नाम यावद् उपरिप्रासादे विहरति ॥४॥

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