Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher: 25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab

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Page 389
________________ वर्ग-तृतीय ( ३११) [निरयावलिका तृतीय वर्ग : षष्ठ अध्ययन मूल-जइणं भंते ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उक्खेवओ०, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेण तेणं समएणं रायगिहे नयरे, गणसिलए चेइए, सेणिए राया, सामी समोसरिए । तेणं कालेणं तेणं समएणं माणिभद्दे देवे सभाए सुहम्माए माणिभइंसि सोहासणंसि चउहि सामाणियसाहस्सोहिं जहा पुण्णभद्दो, तहेव आगमणं, नट्टविही। पुव्वभवपुच्छा, मणिवया नयरी, माणिमद्दे गाहावई, थेराणं अंतिए पन्वजा, एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, बहूई वासाइं परियाओ, मासिया संलेहणा, सठ्ठि भत्ताई०, माणिभद्दे विमाणे उववाओ, दोसागरोवमा ठिई, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ । एवं खलु जंबू ! निक्खेवओ० ॥१॥ ॥ छठें अज्झयणं समत्तं ॥ छाया–यदि खलु भदन्त ! श्रमणेन भगवता यावत् सम्प्राप्तेन उत्क्षेपकः । एवं खन्नु जम्बू ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहं नगरं, गुणशीलं चैत्यं, श्रेणिको राजा, स्वामी समवस्तः । तस्मिन् काले तस्मिन् समये माणिभद्रो देवः सभायां सुधर्माया माणिभद्र सिंहासने चतुभिः सामानिकसहस्रर्यावत पूर्णभद्रस्तथैवाऽऽगमनं, नाटयविधिः, पूर्वभवपृच्छा, मणिपदा नगरी, माणिभद्रो गाथापतिः, स्थविराणामन्तिके प्रवज्या, एकादशाङ्गानि अधोते, बहूनि वर्षाणि पर्यायः, मासिको संलेखना, षष्ठि भक्तानि० माणिभद्र विमाने उपपातः द्विसागरोपमा स्थितिः, महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति । एवं खलु जम्बू ! निक्षेपक:० ॥१॥ पदार्थान्वयः-(श्री गौतम स्वामी जी ने प्रश्न किया-) जइ णं भंते ! भगवन् ! यदि, भगवया जाव संपतेणं- मोक्षधाम में पहुंचे हुए भगवान् महावीर ने, उत्क्षेपक:-पंचम अध्ययन का पूर्वोक्त भाव बतलाया है तो फिर छठे अध्ययन में किस भाव एवं किस महान व्यक्तित्व के सम्बन्ध में वर्णन किया है ? सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि हे जम्बू ! (भगवान् महावीर ने कहा-) तेणं कालेणं तेणं

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