Book Title: Nimitta Author(s): Bramhachri Mulshankar Desai Publisher: Bramhachri Mulshankar Desai View full book textPage 7
________________ २] निमित्त हैं। श्री कानजी स्वामी नोकर्म को ही निमित्त मानते हैं, परन्तु यथार्थ में वह निमित्त नहीं है। सचमुच में निमित्त एक समय का द्रव्य कर्म का उदय ही है। नोकर्म को निमिच मानने से कानजी स्वामी की ऐसी धारणा थी कि "कार्य हुए बाद ही निमित्त का आरोप दिया जाता है" जिस कारण निमित्त कुछ कार्य करता ही नहीं है, ऐसा प्रतिपादन करने लगे। यह गलती आज से आठ-नौ वर्ष पूर्व जब श्री कानजी स्वामी सभा में पंचास्तिकाय ग्रंथ पर प्रवचन देते थे, तब ही उनके दृष्टि में आ गई थी। पंचास्तिकाय ग्रंथ की गाथा १३२, १३५, १३६ में लिखा है कि प्रथम निमित्त में अवस्था होती है तद्पश्चात् नैमिनिक की अवस्था होती है। उस गाथा की टीका में "उर्ध्वम्" शब्द है जिसका अर्थ श्री कानजी स्वामी 'पीछे होता है। ऐसा मानते थे। परन्तु जब उनके ही पंडित श्रीमान् हिम्मतलाल भाई ने कहा कि 'उध्वं' का अर्थ प्रथम होता है, पीछे नहीं होता है अर्थात निमित्त में प्रथम अवस्था होती है, बाद में ही नैमित्तिक में होती है, तब से ही अपनी गलती अपने ज्ञान में आ गई थी। किन्तु दुःख की बात है कि मोक्षमार्ग में भी सांपछछुन्दर की-सी दशा हो रही है । पंचास्तिकाय. ग्रंथ की गुजराती में टीका आज से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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