Book Title: Nimitta
Author(s): Bramhachri Mulshankar Desai
Publisher: Bramhachri Mulshankar Desai

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Page 35
________________ ३०] निमित्त शंका-यदि अक्रम पर्याय होती है तो सर्वज्ञ का ज्ञान मिथ्या हो जाता है। समाधान-सर्वज्ञ का स्वरूप का ज्ञान नहीं है इसी कारण आपको सर्वज्ञ के स्वरूप में शंका होती है। सर्वज्ञ के ज्ञान में पदार्थ झलकते हैं परन्तु भूतकाल तथा भविष्यकाल की पर्याय प्रगट रूप झलकती नहीं है बल्कि शक्तिरूप झलकती है जिससे वर्तमान पर्याय प्रगट सहित पदार्थ भूत-भविष्य की पर्याय की शक्ति सहित झलकता है। इस कारण सर्वज्ञ के ज्ञान में तीन काल की पर्याय झलकती है ऐसा कहा जाता है । जिससे सर्वज्ञ के ज्ञान में बाधा नहीं आती। सर्वज्ञ के ज्ञान में भूत भविष्य का भेद नहीं है । व्यवहार चार प्रकार का है उसमें कनिष्ठ व्यवहार असद्भूत उपचरित व्यवहार है । इस व्यवहार में ज्ञेयके साथ में आत्मा का एक क्षेत्र का सम्बन्ध भी नहीं है । इस असद्भुत उपचरित व्यवहार से कहा जाता है कि भगवान् लोकालोक को देखता है परन्तु निश्चयनय से सर्वज्ञ अपने स्वरूप का ही ज्ञाता दृष्टा है। यदि सर्वज्ञ भूत और भविष्य की व्यक्त रूप पर्याय जानता है तो हमारी प्रथम की तथा शेष की पर्याय जानना चाहिए । हमारी प्रथम पयोय जाने तो उसके पहले हम क्या थे और शेष की पर्याय जाने तब क्या द्रव्य का नाश हो गया ? इससे सिद्ध होता है कि सर्वज्ञ के ज्ञान में भूत भविष्य का भेद नहीं है । [समाप्त] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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