Book Title: Nimitta
Author(s): Bramhachri Mulshankar Desai
Publisher: Bramhachri Mulshankar Desai

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Page 21
________________ निमित्त शक्ति हीन होने से उदय भी हीन आता है और उदय के अनुकूल भाव भी हीन होता है और भाव के अनकल नवीन कर्मका बंध भी हीन होता है। इसी प्रकार उदीरणा भाव द्वारा कर्म की सत्ता इतनी हीन हो जाती है जिसके उदय में आत्मा का भाव मूक्ष्म रागादिक रूप रह जाता है । सूक्ष्म कर्म के उदय में रागादिक सूक्ष्म जरूर होता है परन्तु उस रागादिक में मोहनीय कर्म का बन्ध करने की शक्ति नहीं है परन्तु अन्य कर्मका बन्ध हो जाता है, जिस कारण से आत्मा वीतराग बनजाता है। इससे सिद्ध हुआ कि औदयिक भाव में आत्मा का पुरुषार्थ कार्यकारी नहीं है । कम का उदय ही आत्मा के पुरुषार्थ की हीनता दिखलाता है । अबुद्धि पूर्वक राग में कर्म का उदय कारण है और तद्रूप आत्मा का भाव कार्य है । बुद्धिपूर्वक राग में तथा उदीरणाभाव में आत्मा का भाव कारण है और सत्ता में से कर्म का उदयावली में आना कार्य है । यह दोनोंमें अन्तर है । प्रश्न-'कार्य हुए बाद ही निमित्त कहा जाता है। ऐसी अनेक जीवों की धारणा है । वह धारणा यथार्थ है या नहीं ? उत्तर-जिन जीवों की ऐसी धारणा है कि कार्य हुए बाद निमित्त कहा जाता है उन जीवों को मौदयिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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