Book Title: Nimitta
Author(s): Bramhachri Mulshankar Desai
Publisher: Bramhachri Mulshankar Desai

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Page 23
________________ निमित्त (१) देवकी मूर्ति देखकर आप भक्ति का राग करते हैं किन्तु मूर्ति राग कराती नहीं है, भक्ति किये बाद इस देव की भक्ति करी, ऐसा कहा जाता है । जैसा राग भक्ति का आप में हुआ ऐसा राग मूर्ति में नहीं हुआ अर्थात् निमित्त में नहीं हुआ। (२) दो पुरुष बैठे हैं, वहाँ से एक स्त्री सरल भाव से जा रही है । तब एक पुरुष ने उस स्त्री को देखकर अपने में विकार भाव उत्पन्न किया, क्योंकि भाव पदार्थ के आश्रित होता है तो भी पदार्थ भाव कराता नहीं है। रिकार भाव हुए बाद वह पुरुष कहेगा कि इस स्त्री को देखकर मुझमें विकार भाव उत्पन्न हुआ। जैसा विकार पुरुष में हुआ वैसा विकार स्त्री रूपी निमित्त में नहीं हुआ। दूसरा पुरुष कहता है कि स्त्री को मैंने देखा है किन्तु उसने विकार कराया नहीं। मेरे लिये वह स्त्री मात्र ज्ञेय रूप है और आपने स्वयं अपराध कर विकार किया है। ऐसा अपराध कर जहाँ जहाँ निमित्त बनाया जाता है, तब भाव हुए बाद ही निमित्त का आरोप आता है। (३) एक सरोवर में जल है, वह जल निष्क्रिय निष्कम्प है । उस सरोवर में मछलियां हैं। मछलियां चले तो जल को निमित्त कहा जाता है परन्तु 'जबर्दस्ती बल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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