Book Title: Nimitta
Author(s): Bramhachri Mulshankar Desai
Publisher: Bramhachri Mulshankar Desai

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Page 22
________________ निमित्त भाव का ज्ञान नहीं है जिस कारण से वह अज्ञानी अप्रतिबुद्ध है क्योंकि कार्य हुए बाद निमित्त कहा जाता है ये लक्षण उदीरणा भाव का है। प्रश्न-उदारणा भाव में कार्य हुए बाद निमित्त कैसे कहा जाता है ? उत्तर-संसार के सभी पदार्थ ज्ञेय रूप हैं । उस ज्ञेय को नोकर्म कहा जाता है परन्तु आत्मा स्वयं ज्ञेय को ज्ञेय रूप न जानकर उसको अपने रागादिक में निमित्त चना लेता है । इसी कारण रागादिक रूप भाव हुए बाद निमित्त कहा जाता है। __ शंका-कैसे निमित्त कहा जाता है, ऐसा दृष्टान्त देकर समझाइये । समाधान-श्रोदयिक भाव में निमित्त के अनुकूल नैमित्तिक की अवस्था होनी है अर्थात् दोनों में समान अवस्था होती है, परन्तु उदीरणाभाव में उपादान में जैसी अवस्था होनी है ऐसी अवस्या निमित्र में नहीं होती है। निमित नैमित्तिक संबंध में एक ही समय में दोनों निमित्त भी हैं एवं दोनों नैमिनिक भी हैं, परन्तु उदीरणाभाव में उपादान उपादान ही है और निमिच निमित्त ही है। यह खाश अन्तर है जैसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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