Book Title: Nimitta
Author(s): Bramhachri Mulshankar Desai
Publisher: Bramhachri Mulshankar Desai

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Page 5
________________ * दो शब्द * वर्तमान में निमित्त का प्रश्न बहुत उठ रहा है । कोई कहता है "निमित्त कुछ करता नहीं", कोई कहता है "निमित्त सब कुछ करता है," परन्तु निमित्त का यथार्थ ज्ञान किये बिना कर्तृत्त्व बुद्धि मिटती नहीं । जब तक कर्तृत्त्व बुद्धि मिटे नहीं तब तक मोक्ष मार्ग के सन्मुख जीव कभी आ सकता नहीं है । कर्म और आत्मा का निमित्त -नैमित्तिक सम्बन्ध है। कर्म का उदय निमित्त है और तद्रूप आत्मा की अवस्था नैमित्तिक है । प्रात्मा का रागादिक भाव निमित्त है ओर कार्माण वर्गणा का कर्मरूप अवस्था होना नैमित्तिक है । प्रात्माके विकार में यदि कोई निमित्त है तो एक समय का कर्म का उदय मात्र ही निमित्त है । वह निमित्त बलवान है । प्रात्मा की हीनता बिना कर्म का उदय निमित्त रूप कभी नहीं पा सकता। देव गुरू शास्त्रादि लोक के सब पदार्थ नोकर्म हैं । नोकर्म निमित्त कभी नहीं बन सकता है । जैसे हवा ध्वजा के लिए निमित्त है उसी प्रकार कर्म का उदय आत्मा के लिए निमित्त है । जैसे जल मछली के लिए चलने में निमित्त है उसी प्रकार संसार के सभी नोकर्म आत्मा के लिए निमित्त हैं । हवा बलवान बनकर ध्वजा को गतिशील बनाता है. परन्तु जल मछली को बलवान बनकर चलाता नहीं है, तो भी निमित्त का शब्द का व्यवहार दोनों में किया जाता है । यथार्थ में दोनों निमित्त नहीं है, निमित्त एक ही है ऐसा ज्ञान करने से जीव अपने कल्याण के पथ पर आ सकता है। इस हेतु से यह पुस्तक प्रकाशित कराई जाती है और पूर्ण आशा है कि जिज्ञासु इससे लाभ उठावेंगे। ७० मूलशङ्कर देसाई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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