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निमित्त
चेया उपयडीयढढं उप्पज्जइ विणस्स | पयडीवि चेययटू उत्पज्जइ विरणस्सइ ॥ एवं बंधो उ दुरार्हपि अणोरणपञ्चया हवे | अप्पणी पयडीय च संसारो तेण जायए | अर्थ-- ज्ञान स्वरूपी आत्मा ज्ञानावरणादि कर्म की प्रकृतियों के निमित्त से उत्पन्न होता है तथा विनाश भी होता है और कर्म प्रकृति भी आत्मा के भाव का निमित्त पाकर उत्पन्न होती है, विनाश को प्राप्त होती है । इसी प्रकार आत्मा तथा प्रकृति का दोनों का परस्पर निमित्त से बन्ध होता है तथा उस बन्ध से संसार उत्पन्न होता है। इससे सिद्ध होता है कि कम के साथ में आत्मा का निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध है जो आत्माके भाव के साथ में कार्माण वर्गणा का निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध है । पंचास्तिकाय ग्रन्थ की गाथा १३२ की टीका में लिखा है कि
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"जीवस्य कतु: निश्चय कर्मतापन्नशुभ परिणामो द्रव्यपुण्यस्य निमित्तमात्रत्वेन कारणीभूतत्वात्तदाश्रवचणादूर्ध्वं भवति भावपुण्यम् ।
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अर्थ - - जीव कर्ता है, शुभ परिणाम कर्म है, नही
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