Book Title: Nandisutrasya Churni
Author(s): Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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4-5
विशेषावश्यक गाथाः
श्रीमलधा-31 मागहमादीविजओ, सुंदरिपव्वज्ज बारसभिसओ । आणवणभाउयाणं, समोसरणे पुच्छ दिद्रुतो ॥१७२४ ॥ ३४८ यतिदिष्टा
बाहुबलिकोवकरणं, निवेयणं चकिदवयाकहणं । णाधम्मेणं जुज्झे, दिक्खा पडिमा पइण्णा य ॥ १७२५ ।। ३४९ ॥१४॥
मा पढमं दिट्ठीजुद्ध, वायाजुद्धं तहेव बाहाहिं । मुट्ठीहि य दंडेहि य, सब्बत्थवि जिव्वई भरहो ॥ १९२६ ॥ मू. भा. ३२
सो एव जिव्वमाणो, विहुरो अह नरवई विचितेइ । किं मण्णे एस चक्की, जह दाई दुब्बलो उ अहं ॥ १७२७ ॥ ३३ भा. संवच्छरेण धूर्य, अमूढलक्खो उ पेसए अरहा । हत्थीओ उत्तरत्तिय, वुत्ते चिंता पए नाणं ॥ १७२८ ।। ३४ भा. उप्पण्णनाणरयणो, (तिन्नपइण्णो जिण ) स्स पामूलं । केवलिपरिसं गहुँ, तित्थं नमिऊण आसीणो ॥ १७२९ ॥ ३५ भा. काऊण एगछत्तं, भरहोविय भुंजती विउलभोए । मिरियीवि सामिपासे, विहरइ तवसंजमसमग्गो ।। १७३० ।। ३६ भा.
सामाइयमादीयं, एकारसमाउ जाव अंगाउ । उज्जुत्तो भत्तिगओ. ( अहिज्जिया) सो गुरुसगासे ।। १७३१ ।। भा ३७ (द्विा) का अह अण्णया मिरीयी, गिम्हे उण्हेण परिगयसरीरा । अण्डाणएण चतिओ. इमं कलिंगं विचिंतेति ।। १७३२ ॥ ३५० ठिा मेरुगिरीसमभारे ण होमि समत्थो महत्तमवि वोढुं । समणगणे गणरहिओ, अहंगं संसारमणकंखी ।। १७३३ ।। ३५१ IWएवमणुचिंतयंतस्स तस्स नियगा मती समुप्पण्णा । लद्धो मए उवाओ, जाया मे सासया बुद्धी ॥ १७३४ ॥ ३५२ ॐासमणा तिदंडविरया. भगवंतो निहयसंकुचियगत्ता। अजितिंदियदंडस्स उ, होउ तिवंडं ममं चिंध ।। १७३५ ।। ३५३
लाइदियमुडा संजया य अहयं खरेण ससिहाउ । धूलगपाणवहाओ, वेरमणं मे सया होउ ॥ १७३६ ॥ ३५४ | निक्किचणा य समणा, अकिंचणा मज्झ किंचणं होउ । सीलसुगंधा समणा, अहयं सीलेण दुग्गंधो । १७३७ ।। ३५५
RECARSAARRAGAR
॥१४॥
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