Book Title: Nandisutrasya Churni
Author(s): Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ विशेषा वश्यक गाथाः श्रीमलधा- नेव्वाणमंतकिरिया, सा चोद्दसमणं पढमनाहस्स । सेसाण मासिएणं, वीरजिणिंदस्स छट्टेणं ॥ १६९६ ॥ ३०६ येतिदिष्टाः अट्ठावयचंपोज्जित पावा संमेयसेलसिहरेसु । उसभवसुपुज्जनेमी, वीरो सेसा य सिद्धिगया ॥ १६९७ ॥ ३०७ ॥१२॥ | इच्चवमाइ सव्वं, जिणाण पढमाणुओगतो णेयं । थाणासुण्णत्थं पुण, भणियं पययं अतो वोच्छं ॥ १६९८ ॥३१२ | उसभजिणसमुत्थाणं, उत्थाणं जं तओ मिरीइस्स । सामाइयस्स एसो जं पुव्वं निग ( मो अहिगओ)॥१६९९ ॥ ३१३ संबोहणनिक्खम( णं नागिंदो) विज्जदाणवेयड्डे । उत्तरदाहिणसेढी, सट्ठीपण्णासनगराई ॥ १७०० ॥ ३१७ |चत्तबहुलट्ठमीए, चउहिं सहस्सेहिं सो उ अवरण्हे । सीया सुदंसणाए, सिद्धत्थवणमि छद्रुण ॥ १७०१॥ ३१८ चउरो साहस्सीओ, लोयं काऊण अप्पणा चेव । जे एस जया काहिई (तं तह अम्हेवि ) काहामो ॥ १७०२ ॥ ३१५ उसभी वरवसभगई घेत्तूण अभिग्गहं परमघोरं । वोसट्ठचत्तदेहो, विहरइ गामाणुगामं तु ॥ १७०३ ॥ ३१६ Bाणवि ताव जणो जाणइ, का भिक्खा केरिसा व भिक्खयरा? । ते भिक्खमलभमाणा वणमझे तावसा जाया ॥१७०४॥ मू. भा.३१ दभगवंपदीणमणसो, संवच्छरमणसिओ विहरमाणो । कनाहिं निमंतिज्जइ, वत्थाभरणासणेहिं च ॥ १७०५॥ ३१८ संवच्छरेण भिक्खा, लद्धा उसमेण लोगनाहेण । ततिए ( सेसेहिं बीय) दिवसे लद्धा उ पढमभिक्खा उ)॥ १७०६॥ ३१९ उसमस्स उ खोयरसो, पारणए आसि लोगनाहस्स । सेसाणं परमण्णं, अमयरसरसोवमं आसि ॥ १७०७ ।। ३२० घुटुं च अहोदाणं, दिव्वाणि य आहयाई तूराई । देवा य सनिवतिया, वसुहारा चेव वुट्ठा य ॥ १७०८ ॥ ३२१ गयपुरसेज्जंसो खोयरसदाणवसुहारपेढगुरुपूया। तक्खसिलायलगमणं, बाहुबलि निवेयणं चव ॥ १७०९॥ ३२२ .

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 238