Book Title: Nalvilasnatakam Author(s): Ramchandrasuri, Vijayendrasuri Publisher: Harshpushpamrut Jain GranthmalaPage 13
________________ १२ ११ नाटक अने घणां प्रबोधो ने पण रच्या छे. सो प्रबन्धनो उल्लेख छे. हस्तलिखित साहित्यमां क्यांक विरल प्रतो पण पडी हशे. केटलाक ग्रन्थो मात्र बीजा ग्रन्थोमां निर्देश करायेला नामथी ज मले छे. पू० रामचन्द्रसू. म. नु काव्य आदि उपरनु अनोखु प्रभुत्व, शासनना शिरोमणि भावनु जोवन, गुरुसमर्पण विगेरे अद्भुत हता. तेमनी आ 'नलविलासनाटकम्' कृतिनु सम्पादन करतां आनन्द थाय छे. प्राचीन साहित्यनुवांचन मनन वधे तो तेथी भाषादिना ज्ञान साथे भावनो पण विकास थाय अने ते द्वारा आत्मा निस्वार्थ निर्मल भावनापूर्वक मुक्तिमार्गनो पुनोत पथिक बने एज शुभ अभिलाषा. सं० २०४० जेठ सुद ११ लि०शनिवार ता० ९-६-८४ प्रकृष्टवक्ता पू. गुरुदेव मु. लाखाबावल-शांतिपुरी आ. श्री विजयामृतसूरीश्वर विनेय जि. जामनगर (सौराष्ट्र) जिनेन्द्रसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 154