________________
विषय
( २ )
लोक ६६
ज्ञान और कर्म के समुच्चयाभावमें अन्य कारणोंका निर्देश भेदाभेदवादीके मत में भी ज्ञान - कर्म के समुच्चयका असंभव कथन ६८ कर्मवादियोंकी उक्तियोंका क्रमशः खण्डन
८०
विधिबोधित न होने के कारण वेदान्त वाक्योंका प्रामाण्य नहीं
हो सकता, इस शङ्काका खण्डन
नहीं
स्वतः सिद्ध आत्मवस्तु में अविश्वास नहीं हो सकता
आत्मामें कर्तृत्व नहीं है
आत्मा में भोक्तृत्व नहीं है
देहाभिमानी पुरुषका ही कर्ममें अधिकार है, अभेददर्शीका
ज्ञानसे ही मुक्ति होती है, इसका उपसंहार
द्वितीय अध्याय
उत्थानिका (वक्यमाण अध्यायका तात्पर्य)
त्वंपदार्थका प्रतिपादन
वाक्यके बिना ब्रह्मज्ञान नहीं हो सकता है, यह प्रतिपादन
देह आत्मा नहीं, यह कथन
भट्ट मीमांसक मतका निराकरण
बौद्ध मतका निराकरण
sent निवृत्ति अद्वैतभावकी सिद्धि
लक्ष वस्तुके स्वरूपका कथन
बुद्धि ही परिणामिनी है, आत्मा नहीं
आत्मा ही समस्त बुद्धियों का साक्षी है
आत्मा कूटस्थ - अविकारी है
...
...
...
युक्तियों द्वारा बुद्धिका परिणामित्व और आत्माकी कूटस्थता वेदान्त सिद्धांत पर अविश्वास असंभव
सांख्य-सिद्धांत से वेदान्त-सिद्धांत की भिन्नता
iri
८७
६२
६४
Www
६६
हह
४
१६
२४
३६
५३
५७
so
७१-७५
८३
८६
६३
६.७