Book Title: Naishkarmya Siddhi
Author(s): Prevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
Publisher: Achyut Granthmala Karyalaya

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Page 181
________________ माषानुवादसहिता १५५ जैसे सुवर्णादिसे बने सुन्दर अलङ्कारादि, देहके अध्यासवश देहादिसे व्यतिरिक्त आत्मा में अध्यस्त होते हैं । वैसे ही पूर्वोक्त जितने विशेषण कहे गये हैं, वे भी विद्या वश आत्मामें कल्पित हैं । अतएव शास्त्र और गुरु की कृपासे शुद्ध श्रात्मा के ज्ञान होनेपर वे सब असत् रूप हो जाते हैं ॥ २७ ॥ तस्माच्यक्तेन हस्तेन तुल्यं सर्वं विशेषणम् । अनात्मत्वेन तस्माज्ज्ञो मुक्तः सर्वविशेषणैः ॥ २८ ॥ क्योंकि पूर्वोक्त कारणत्व, बधिरत्व, दुःखित्वादि विशेषण विद्यासे ही श्रात्मा में कल्पित हैं, इसलिए वे छिन्नहस्तके सदृशु अनात्मा ही है । अतएव ज्ञानी पुरुष समस्त विशेषणोंसे मुक्त हो जाता है ॥ २८ ॥ ज्ञातैवात्मा सदा ग्राह्यो ज्ञेयमुत्सृज्य केवलः । अहमित्यपि यद्ग्रा व्यपेताऽङ्गसमं हि तत् ।। २९ ।। ( सर्वदा स्थित न होनेके कारण ये विशेषण आत्मा के नहीं हो सकते तो श्रात्मा कौनसा है, इस शङ्काको दूर करते हैं -) जो सर्वदा न रहनेवाले समस्त विशेषणों के भाव और अभावका साक्षीरूपसे सर्वदा स्थित है, उसीको सम्पूर्ण (ज्ञेय) विशेषणों को परित्याग करके श्रात्मा समझिए और जो 'अहम्' ऐसा प्रतीत हो रहा है उसे भी सुषुप्ति में न रहने से छिन्नहस्त पादादिके समान अनात्मरूप समझना चाहिए ॥ २६ ॥ दृश्यत्वादहमित्येष नात्मधर्मो घटादिवत् । तथाऽन्ये प्रत्यया ज्ञेया दोषाश्चात्माऽमलो ह्यतः ||३०|| और ये ( व्यभिचारी होने से ये अहङ्कारादि छिन्न हस्तपादादिके समान अनात्मरूप हैं' धर्म भी नहीं हैं, ऐसा कह कर दृश्य होनेके कारण भी ये आत्मा या उसके धर्म नहीं हैं, ऐसा श्राचार्यने कहा है) चूँकि यह श्रहङ्कार दृश्य है, अतएव घटादिके समान श्रस्मा या उसका धर्म नहीं है तथा और भी जो वृत्तिरूप सुख, दुःख, राग, द्व ेषादि दोष हैं, वे भी दृश्य होने के कारण आत्मरूप नहीं हैं, ऐसा समझिए । अतएव आत्मा सर्वथा विशुद्ध हैं ।। ३० ।। सर्वन्यायोपसङ्ग्रहः— नित्यमुक्तत्वविज्ञानं वाक्याद् भवति नान्यतः । वाक्यार्थस्याऽपि विज्ञानं पदार्थस्मृतिपूर्वकम् ॥३१॥ फिर भी जो पूज्यपाद श्राचार्योंने हमारे कहे अर्थको 'तत्त्वमसि' प्रकरण में दिल

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