Book Title: Naishkarmya Siddhi
Author(s): Prevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
Publisher: Achyut Granthmala Karyalaya

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Page 196
________________ १७० नैष्कर्म्यसिद्धिः अतीव निर्मल, विशुद्ध सत्यरूप है, जो हम लोगोंकी बुद्धि के श्रावरक अज्ञानरूप अन्धकारको दूर करनेवाला है तथा जो अतीन्द्रिय है, किसी विषयमें भी प्रतिहत नहीं होता अर्थात् जो समस्त वस्तुओका ज्ञान कराता है, ऐसा दिव्य ज्ञान सम्पूर्ण संसारके बीज अज्ञानको दूर हटाकर जिस सद्गुरुने न्यायरूपी शलाकासे हमारे हृदयमें प्रकट किया, उस जगद्वन्दनीय गुरुत्रोंके गुरु आचार्य श्रीशङ्करको हमारा प्रणाम है ॥ ७७॥ सम्बन्धोक्तिरिय साध्वी प्रतिश्लोकमुदाहृता । नैष्कर्म्यसिद्धेत्वेिमां व्याख्याताऽसौ' भवेद् ध्रुवम् ।।७८॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यश्रीमच्छङ्करपूज्यपादशिष्यश्रीसुरेश्वराचार्यविरचितायां नैष्कर्म्यसिधौ . चतुर्थोऽध्यायः नैष्कर्म्य-सिद्धि के प्रत्येक श्लोककी यह सङ्गति मैंने कही है, जो इसको अच्छे प्रकारसे समुझ लेगा, वह अवश्य इस ग्रन्थका व्याख्यान कर सकता है ॥ ७८ ॥ धर्मशास्त्राचार्य पण्डित श्रीप्रेमवल्लभत्रिपाठिशास्त्रिविरचित नैष्कर्म्यसिद्धि के भाषानुवादमें चतुर्थ अध्याय समाप्त . समाप्तोऽयं ग्रन्थः। . - १-व्याख्यातास्य, ऐसा भी पाठ है।

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