Book Title: Naishkarmya Siddhi
Author(s): Prevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
Publisher: Achyut Granthmala Karyalaya

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Page 194
________________ १६८ tosसिद्धिः साधनका सम्पादन करे, दुराचरण कदापि न करे । क्योंकि यह ग्रन्थ श्रात्मस्वरूपका अनुकरण करनेवाला है ॥ ७० ॥ न दातव्यश्चायं ग्रन्थः नाsविरक्ताय संसारान्नाऽनिरस्तैषणाय च । न चाऽयमवते देयं वेदान्तार्थप्रवेशनम् ॥ ७१ ॥ गुरुजनों को भी इस ग्रन्थका अध्यापन ऐसे पुरुषको नहीं कराना चाहिए जो कि संसार से विरक्त न हुआ हो, जिसकी इच्छाएँ निवृत्त न हुई हों और जो हिंसा यदि यम से सम्पन्न न हो उसको भी वेदान्तप्रतिपाद्य विषयमें चित्तको प्रवेश करानेवाला यह ग्रन्थ नहीं पढाना चाहिए ॥ ७१ ॥ ज्ञात्वा यथोदितं सम्यग्ज्ञातव्यं नाऽवशिष्यते । न चाऽनिरस्तकर्मेदं जानीयादञ्जसा ततः ॥ ७२ ॥ इस ग्रन्थ में जैसा प्रतिपादन किया है, वैसा जान लेनेसे फिर कुछ भी ज्ञातव्य अवशिष्ट नहीं रहता । और जिसने सर्व कर्मोका संन्यास नहीं किया है, वह श्रनायास से इस ग्रन्थ को नहीं समझ सकता । अतएव ॥ ७२ ॥ 'निरस्तसर्वकर्माणः प्रत्यक्प्रवणबुद्धयः निष्कामा यतयः शान्ता जानन्तीदं यथोदितम् ॥ ७३ ॥ 1 जिन्होंने ( विधिपूर्वक ) सर्व कर्मों का संन्यास किया हो, जिनकी बुद्धि ( एकमात्र ) श्रात्माको ओर लगी हो, तथा जिनके अन्तःकरण के धर्म - कामादि दोष दूर हुए हों, जिनका मन विक्षिप्त न हो वे विरक्त शान्त पुरुष ही इस ग्रन्थके यथोक्त मर्मको अच्छे प्रकार से समझ सकेंगे ॥ ७३ ॥ श्रीमच्छङ्करपादपद्मयुगलं संसेव्य लब्ध्वोचिवान् ज्ञानं पारमहंस्यमेतदमलं स्वान्तान्धकारापनुत् । माभूदत्र विरोधिनी मतिरतः सद्भिः परीक्ष्यं बुधैः सर्वत्रैव विशुद्धये मतमंद सन्तः परं कारणम् ॥ ७४ ॥ मैंने श्रीमत्पूज्यपाद भगवान् श्रीशङ्कराचार्य गुरुवर्य के चरणारविन्दको निष्कपट सेवा करके हृदय के अन्धकारको दूर करनेवाला, निर्मल परमहंसरूपता को देनेवाला जो ज्ञान प्राप्त किया, उसीको इस ग्रन्थ रूपसे प्रतिपादन किया है। कोई भी पुरुष दोषदृष्टि न करें। किन्तु महात्मा लोग प्रयत्नसे क्योंकि महात्मा पण्डितजन ही गुण अथवा दोषोंको सिद्ध करनेमें १ - निरस्य सर्वकर्माणि, ऐसा भी पाठ है । इसलिए इस ग्रन्थपर इसकी परीक्षा करें । प्रमाण हैं ॥ ७४ ॥

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