Book Title: Naishkarmya Siddhi
Author(s): Prevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
Publisher: Achyut Granthmala Karyalaya

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Page 140
________________ ११२ नैष्कर्म्यसिद्धिः . साक्षादपरोक्षादात्मस्वभावेनानात्मनो हानोपादानयोः सम्बन्धग्रहणाकमतिशयं वाक्यं कुर्यात् । मैवं वोचः-लिङ्गाधीनत्वात्तत्प्रतिपत्तेः । न हि लिङ्गव्यवधानेनात्मप्रतिपत्तिः साक्षात्प्रतिपत्तिर्भवति 'यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा विवृणुते' इति श्रुतेः । अत आह शङ्का-द्रष्टा, दर्शन और दृश्य इन तीनोंका जाग्रत् , स्वप्न और सुषुष्टि इन अवस्थाओंमें उत्पत्ति और विनाश दीख पड़ता है। इनका यह उत्पत्ति और विनाश जिसको साक्षी मानकर होता है, वह श्रात्मा उत्पत्ति नाशसे रहित है। जैसे जगत्का प्रकाश और अप्रकाश जिसके द्वारा होता है वह सूर्य प्रकाश और अप्रकाश इन अवस्थाओं से रहित, सर्वदा एकरूप है । जब ऐसी बात सिद्ध है, तब वेदान्त वाक्यसे जिस उत्पत्ति विनाश रहित ज्ञानमात्ररूप आत्माका रूप सम्पादन करना है, उसका बोध तो अनुमानसे ही सिद्ध हो गया। फिर वेदान्तवाक्यकी आवश्यकता न होनेसे वे अप्रमाण हो जायँगे ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि अनुमानसे जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह परोक्षरूपसे वस्तुका बोधक है, अपरोक्षरूपसे नहीं। अतएव प्रत्यक्षरूपसे ग्रहण होनेके लिए वाक्यकी अपेक्षा है। शङ्का-द्रष्टा, दर्शन, दृश्य इन तीनोंकी उत्पत्ति और विनाशका साक्षात प्रत्यक्षरूप साक्षीके साथ साक्ष्य-साक्षिभावरूप सम्बन्ध गृहीत है। अतएव ये साक्ष्य हैं तो इनका कोई साक्षी भी होना चाहिए। इस प्रकार अनुमानसे भी साक्षीका प्रत्यक्षरूपसे भी ग्रहण हो सकता है, फिर प्रत्यक्ष ज्ञानके लिए वाक्य की क्या आवश्यकता है? ___ समाधान-ऐसा मत कहिए । क्योंकि दृष्टान्त और दान्तिकमें रहनेवाला जो साधारण धर्म है, उसीको अनुमानसे सिद्धि होती है, ऐसा मानना चाहिए। नहीं तो अनुमानका उच्छेद ही हो जायगा। इसलिए यह मानना पड़ेगा कि अनुमानसे अात्माकी जो प्रतीति होगी वह सामान्यरूपसे ही होगी, विशेषरूपसे नहीं। अतएव प्रत्यक्षात्मक हानेके लिए वेदान्तवाक्यकी अपेक्षा है। लिङ्गाधीन होनेवाली प्रतीति प्रत्यक्ष प्रतीति नहीं हो सकती; इसलिए श्रुति कहती है कि “यह साधक मुमुक्षु जिस निर्विशेष अात्माको निरन्तर तन्निष्ठ होकर भजता है, उसको यह आत्मा प्राप्त हो सकता है। इसलिए कहते हैं लिङ्गमस्तित्वनिष्ठत्वान्न स्याद्वाक्यार्थबोधकम् । सदसद्वयु त्थिात्माऽयमतो वाक्यात्प्रतीयते ॥ ५७ ॥ अनुमानसे इतनामात्र सिद्ध हो सकता है कि कोई एक आत्मा पदार्थ है । किन्तु वह सत् है, अथवा असत् है, इत्यादि विकल्पोंसे रहित शुद्ध, बुद्ध आत्मा है; इस

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