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नागरीप्रचारिणी पत्रिका जाके हेत कीनो है अकाज वृजराजदेव,
लीनो कुटलेहड जो रानी से छिराय के । हरयो जब पाछे नृप आयो निज समर माही,
करयो है विचार जबै वकत को गुआइ के। नेकहुँ न मान्यो उपकार दत्त मीतन को,
प्रापनी भलाई सब दीनी है बहाइ के ॥४१॥ भावार्थ-वृजराजदेव ने आदरपूर्वक राजा के साथ भेट की और बहुत देश देकर सम्मान किया। इस पर राजा घुमंडचंद को भी सुध आई परंतु बेला गुजारकर । इसके आगे कवि ने अपनी कविता में ऐतिहासिक घटना के साथ साथ कुछ कुछ हास्यरस का वर्णन किया है। कारण यह कि ये वंश के नाते रिश्तेदार हैं। सोरठा-प्राइ मिल्यो जसुआल देवीचंद बिदा भयो ।
लागी करन शृंगार यों सुनि नार गुलेर की ॥ ४२ ॥ भावार्थ-जसुआँपति ( राजा अभयरायसिंह ) आ मिला और राजा देवीचंद (घलूर विलासपुर का राजा ) बिदा हुआ। इसके पीछे यह समाचार पाकर गुलेर की युवतियों श्रृंगार करने लगीं।
कुंडलिया देवीचंद बिदा भयो आइ मिल्यो जसपाल । यो सुनि नार गुलेर की लागी करन शृंगार । लागी करन श्रृंगार कंत आवत घर जाने । सरें सकल अभिलाख रैन दिन यो मत ठानें । देवदत्त चित लाइ जान वरदायक सेवी। सो तूठी जगमाइ संत सुखदायक देवी ॥४॥ हरिपुर की तिरियान को बान्यो अमित अनंद । प्रावत हैं घर को सुन्यो भूप गुवर्धनचंद ।।
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