Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 16
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 81
________________ तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४६३ पा रहा है, कहीं इलहाम हो रहा है, कहीं झाड़-फूक मची है, कहीं करामात दिखाई जा रही हैं, कहीं कुछ हो रहा है, कहाँ कुछ। कहीं कोई किसी हाल में बेहाल है तो कहीं कोई किसी मौज में मग्न। संक्षेप में सर्वत्र उन्हीं क्रिया-कलापों का व्यापार हो रहा है जो आजकल की दरवेश-मंडली में प्रतिष्ठित हैं और जिनकं व्याकरण में सूफी आज भी तत्पर हैं। उक्त नबियों की धाक तब तक जमी रही, उनका रंग तब तक. चोखा रहा जब तक यहा के कट्टर सिपाही जोर में न पाए । यहा की पूरी प्रतिष्ठा स्थापित हो जाने पर भी उनका प्रभाव काम करता रहा। साल के समान प्रतिष्ठित व्यक्ति भी उनके चक्कर में मा गया। एलिश और एलिजा भी उनसे प्रभावित हो गए। एलिश के युग में तो उनका संघ स्थापित हो गया था और पवित्र नगरों में प्राय: उनके मठ भी बन गए थे। परंतु यहा के धुरीब सेवकों को संतोष न हुमा। जरमिया' उनके विनाश पर तुल गया। एमा, एमस और होसिया ने भी कुछ उठा नहीं रखा । फलतः अमरद कुत्ते कहलाए और देवदासियों की दुर्गति होने बगी। परंतु सत नबियों की वेतसी-वृत्ति और मानव-भाव-भूमि ने उनकी सदैव रसा की और उनकी परंपरा समय समय पर फलती-फूलती रही। वस्तुत: उन्हीं की भावना का प्रसाद प्रचलित सूफीमत है जो अन्य मतो से इतना प्रोत-प्रोत हो गया है कि उसके उद्गम के विषय में न जाने कितने मत चल पड़े हैं। निस्संदेह, सूफियों के परदादा उक्त नवी ही हैं जो सहजानंद के उपासक और उहास के परम भक्त थे। सरव-शुद्धि के लिये उनमें नाना --- (1) Jeromiah XXVI 7-16, XXIII 9-40 (२) Deuteronomy xXIII 18 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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