Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 16
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 82
________________ ४६४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका प्रकार के उपचार प्रचलित थे और वे प्रियतम' के संयोग के लिये परम प्रेम का राग अलापते थे। जिन मनीषियों ने उनकी पूरी छान-बीन और माधुनिक दरवेशों का प्रत्यक्ष दर्शन किया है उनकी भी कुछ यही राय है। हो, मसीह या मुहम्मद तक ही दृष्टि दौड़ानेवाले समीक्षक अभी उसको स्वीकार नहीं करते। फिर भी प्राशा होती है कि उक्त विवेचन के आधार तथा अन्य पंडितों के प्रमाण पर किसी मनीषी को उसमें मापत्ति न होगी कि वास्तव में मादन-भाव के जन्मदाता उक्त नबी ही हैं और उन्हीं की भावना एवं धारणा की रक्षा का सच्चा प्रयत्न सूफीमत या तसव्वुफ है । गत प्रकरण में हमने देख लिया कि सेनानी यहा के साहसी सिपाही नबियों के उल्लास के विरोध में किस तत्परता से काम कर रहे थे। बात यह है कि यहा एक विदेशी देवता था। उसकी कृपा न जाने क्यों बनी-इसराईल पर इतनी हो गई कि उसने मूसा द्वारा उसका उद्धार किया। कहा जाता है कि इसराईल का अर्थ ही होता है कि देवता युद्ध करता है। यहा रणक्षेत्र में स्वयं (१) इसराईल नामक पुस्तक ( पृ० २४३ ) में लाइस महोदय लिखते हैं कि देव-संताना या देवताओं का विवाह मनुष्य की पुत्रियों के साथ यहा के उपासकों की दृष्टि में भी हो जाता था। अरष भी इस विश्वास के कायल थे कि किसी जिन का प्रणय किसी इंसान के साथ हो जाता है। अरबी सा उद्भट विद्वान् भी इस प्रकार के प्रणय में विश्वास करता था। कहने का तात्पर्य यह कि इस प्रकार के प्रणय में उस समय जनता का पूरा विश्वास था और प्रियतम के परम होने के कारण प्रेम को भी परम होना पड़ा। देखिए--जेनेसिस, ६, १-४। (२) Israel p. 444, The Spirit of Islam p. 471 Asianic Elements in Greek Civilization p. 192 The Religion of the Hebrevs p. 116 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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