________________
४६८
नागरीप्रचारिणी पत्रिका संग्रह का नाम 'सुलेमान के गीत' है। जो लोग उक्त गीतों को एक ही व्यक्ति की रचना समझते हैं उनमें भी कुछ ऐसे हैं जो इनको विवाहपरक ही बतलाते हैं, उन्हें ईश्वरपरक नहीं कहते । परंपरागत विचारों के प्रमाणों से सिद्ध होता है कि उनका धार्मिक महत्त्व अवश्य ही अक्षुण्ण रहा है। फीलो, ओरिगन, टटुंल्लियन आदि। मनीषियों की दृष्टि में आध्यात्मिक विवाह ही इन गीतों में इष्ट है। परमात्मा और जीवात्मा, ईश्वर और भक्त ही इन गीतो के दुलहा तथा दुलहिन हैं। ध्यान देने से इन गीतों की क्रियाओं तथा सर्वनामों में लिंग-विपर्यय गोचर होता है। स्त्रीलिंग के स्थल पर पुल्लिंग का प्रयोग भी इनमें मिल जाता है। जान पड़ता है कि इन गीतों में स्त्री और पुरुष दोनों ही क्रमश: आश्रय तथा प्रालंबन हैं । एकिबरे इनको सर्वपुनीत और जोजेफस३ इनको ईश्वरपरक समझता था। होसिया भी इनसे अनभिज्ञ न था। सारांश यह कि इन गीतों के अध्यात्म का आभास बायबिल में भी मिलता रहा है और इन्हीं के आधार पर मसीह दुलहा और चर्च या व्यक्ति-विशेष दुलहिन बनते चले आए हैं। सच बात तो यह है कि इनमें सूफियों का इश्क हकीकी इश्क मजाजी के परदे में छिपा है। लौकिक प्रेम के आधार पर अलौकिक प्रेम का निरूपण ही इनका प्रतिपाद्य विषय है। आज भी सूफी इन गीतों की पद्धति पर पद-रचना कर रहे हैं। निदान इन गीतों को उन नबियों का प्रसाद समझना चाहिए जो उल्लास के विधायक और मादन-भाव के भक्त थे। ___ उक्त गीतों के अतिरिक्त प्राचीन बायबिल में कतिपय स्थल और भी ऐसे हैं जिनके आधार पर भली भाँति सिद्ध किया जा सकता
(,) Christian Mysticism p. 370 (२) The song of songs p. 8 (३) The song of songs p. 88
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com