Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 16
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 123
________________ तसव्वुफ अथवा सूफोमत का क्रमिक विकास ५०५ का अनुरोध। सारांश यह कि मंसूर के मर्म को समझने के लिये शामी संकीर्णता से ऊपर उठ मुक्त भाव-भूमि पर पाकर विचारना चाहिए। मंसूर एवं मसीह के मार्ग सर्वथा भिन्न थे। समय भी उनका एक न था। मंसूर मसीह का भादर करता था, उनके मात्मोत्सर्ग को उत्तम समझता था; पर इतने से ही वह उनका अनुयायी नहीं कहा जा सकता। मसीह के पिता के राज्य' और मंसूर के 'मनल्हक' में बड़ा अंतर है। मसीह संदेश सुनाने आए थे, मंसूर इसी संसार के परिशीलन में 'प्रनल्हक' की अनुभूति दिखा रहा था। मंसूर तो सत्य जिज्ञासा की प्रेरणा से भारत माया था, उसी भारत में जहाँ 'अहं ब्रह्मास्मि' का निरूपण हो रहा था। उसके इस देशाटन का ध्येय रज्जुकला या नाट्य न था। हाँ, वह सूत्र अवश्य था जिसका परिणाम उसका 'मनलहक' है। यजीद परमात्मा में इतना अनुरक्त था कि अंत में उसने 'ओ तू मैं' का साक्षात्कार किया; मंसूर आत्म-चिंतन में इतना निरत था कि उसने अपने को सत्य कहा। च पंडित मैसिगनन के अनुसंधानों से मंसूर के संबंध में जहाँ अनेक तथ्यों का पता चला है वहीं उसके प्रत उद्घोष का उद्घाटन भी संदिग्ध हो गया है। सूफी मत के प्रकार पंडित उसको द्वैती सिद्ध करना चाहते हैं, पर हल्लाज द्वैतवादी कदापि न था; अधिक से अधिक वह विशिष्ट मद्वैती था। सूफियों ने वो उसे अद्वैत का विधाता माना है। हल्लाज के माविर्भाव से वसव्वुफ सफल हो गया। उसने प्रेम को परमात्मा के सरव का सार सिद्ध किया। उसका कथन है-"मैं वही हूँ जिसको प्यार करता हूँ, जिसे प्यार करता हूँ वह (i) A Literary History of Persia Vol. I p. 431. (.) Studies in Islamic Mysticism p. 84. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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