Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 16
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 87
________________ तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४६८ है कि नबियों की उक्त परंपरा बराबर चलती रही । प्रेम के अनंतर सूफियों में संगीत का प्रचार है । प्राचीन बायबिल में संगीत -प्रिय नबियों' की कमी नहीं। एलिश को यहा की प्रसन्नता के लिये उसके मंदिर में संगीत का विधान करना पड़ा दाऊद र यहा के संपुट ३ के सामने नाचता था । स्त्रियाँ संगीत के साथ वीरों का स्वागत करती थीं । इब्रानी शब्द हग ( उत्सव ) का अर्थ ही नाच होता है । प्रेम-गीत का प्रधान बाजा उगाव था जिसका धात्वर्थ उत्कंठित करना होता है। प्रेम और प्रणय के गीत के साथ ही साथ सुरा के भी गीत गाए जाते थे । इस प्रकार उनमें प्रेम, संगीत और सुरा का प्रचार था । इशाया में प्राचीन नबियों का उल्लास था । वह तीन वर्ण तक यूरुसलम में नग्न भ्रमण करता रहा । उसने प्रतीक का प्रयोग कर मादन-भाव को प्रोत्साहित किया। एक महाशय की दृष्टि में तो उसने 'अहं ब्रह्मास्मि' की घोषणा कर श्रद्वय का प्रतिपादन किया । सचमुच ही उसके गान में वेदना है, करुणा है, कामुकता है । संक्षेप में वह अंशत: सूफी है। उसके अतिरिक्त अन्य नबियों में भी हाल, इलहाम और करामात की पूरी प्रतिष्ठा थी । जोशुभार ( ) Israel p. 275 ( २ ) II Samuel VI, 14 (३) प्रायः लोगों की धारणा है कि यहा की उपासना में प्रतिमा या प्रतीक की प्रतिष्ठा न थी, किंतु खोज से पता चलता है कि यहा का प्रतीक एक संपुट में रखा जाता था और लोग उसे संग्राम में भी साथ रखते थे । इस दृष्टि से उसकी उपासना शालिग्राम की उपासना के तुल्य थी । ( The Religion of the Hebrews p. 92, 94 Israel p. 427) ( ४ ) A History of H. Civilization p. 323, 327. The Religion of the Hebrews p. 170 ( 2 ) Joshua VIII. 18, 26 X 12-13 "" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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