Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 16
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 96
________________ ४७८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका इतने अनूठे तथा मनोरम ढंग से किया कि उसके उपरांत सभी उस पर मुग्ध हो उस एक की माराधना में तल्लीन हो गए। सूफोमत के अध्यात्म में उसका योग अचल है। बाह्य दृष्टि को फेरकर अभ्यंतर की जो उसने परीक्षा की तो उसमें उसको उस एक का दर्शन मिला जिसको देखकर फिर और कुछ देखना शेष नहीं रह जाता। उसने हृदय के भीतर झांकने का अनुरोध किया और संसार से उड़ भागने की दीक्षा दी। उसकी दृष्टि में आत्मा का न तो जन्म होता है न मरण । उसके विचार में 'सत्यं शिवं सुंदर का आधार दृश्य से परे और अज्ञेय है। समाधि में उसका साक्षाकार हमें हो जाता है; अत: हम परमानंद से वंचित नहीं रह सकते। प्लाटिनस का यह आनंद प्रज्ञा एवं प्रेम का प्रसव है, किसी उमंग या उल्लास का फल नहीं। इसमें संयम है, नियम है, तप है; किंतु हठ का नाम नहीं। प्लोटिनस दृढ़ता के साथ आग्रह करता है कि यदि आत्मा परमात्मा के अनुरूप न होती तो उसको उसका साक्षात्कार किस प्रकार संभव था। संक्षेप में, प्लोटिनस ने जिज्ञासु प्रेमियों के लिये एक राजमार्ग निर्धारित कर दिया, जिस पर चलकर न जाने कितने पथिक अपने लक्ष्य में लीन हुए। सूफियों ने उसके ऋण को स्वीकार कर उसे 'शेख अकबर के रूप में अपना लिया। सिकंदरिया का यह अनुपम प्रसव शामी संतों का सद्गुरु हो गया। वास्तव में प्लाटिनस ने संत-मत को जीवन-दान दिया और साक्षात्कार के मार्ग को प्रशस्त कर दिया। __फीलो, प्लाटिनस तथा डायोनीसियस के प्रयत्न से मादन-भाव को जो प्रोत्साहन मिला इससे उसके बाह्य तथा आभ्यंतर दोनों पक्ष पुष्ट हो चले थे; किंतु वह पंख पसार संसार में स्वच्छंद विहार नहीं कर सकता था। मादन-भाव के संबंध में अब तक जो कुछ निवेदन किया गया उससे इतना तो स्पष्ट ही है कि उसको सदैव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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