Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 16
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 97
________________ तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४०६ समझ-बूझकर आगे बढ़ना एवं फूक फूँककर कदम रखनी पड़ासंभवत: इसी से उसमें अधिक रमणीयता भी आ गई । यहा के उपासकों ने उसके विष्वंस की जो उम्र चेष्टा की उससे हम भली भाँति परिचित है । मसीही प्रचारकों को भी वह क्षम्य न था । मसीह ने 'पिता' का राज्य पृथिवी पर स्थापित करने का संकल्प किया, चपत खाकर गाल फेरने की शिक्षा दी, जनता में प्रेम-भाव का प्रचार किया । किंतु भक्तों ने गाल फेरकर चकमा देना आरंभ किया । खाकर मुँह फेरना उचित समझा। मुँह' ने प्यार करना आरंभ किया और हाथ ने वध । एक मसीही मर्मज्ञ ने ठीक ही कहा है कि मसीहियों का प्रेम केवल पारस्परिक था; वह भी इस - लिये कि लोग समझ सकें कि उनमें प्रेम है । फलत: मसीहीसंघ का ध्येय धावा और ध्वंस हो गया । संग्रह एवं शासन में उसे 'पिता का राज्य' दीख पड़ा । उसमें जो साधु थे उनकी भी दृष्टि में मसीह ही परमपिता के एकाकी पुत्र थे। इनकी लाड़ली दुलहिन उक्त संस्था ही थी । फिर यह किस प्रकार संभव था कि उसके देखते किसी अन्य को सुहाग मिले। सेवा एवं प्रेम का भाव उनमें इतना अवश्य था कि दलितों के साथ सहानुभूति प्रकट कर उनके घाव को घो या उन्हें बपतिस्मा दे दें । धर्माधिकारियों की धाक इतनी जमी थी कि उनकी व्यवस्था में किसी को आपत्ति करने का अधिकार न था । देवियों की यह दशा थी कि उनकी दृष्टि ही पाप की जननी थी । हौवा की संतान पतन की प्रतिमा समझी जाती थी । धर्मों की इस घोर व्यवस्था में संस्था को ही दुल = (1) The Religions of India (Hopkins) p. 566 ( २) The Fourth Gospel (Scott ) p. 115 ( 4 ) A Short History of Women p. 219 ४ ) देवदासियों की मर्यादा नष्ट होने पर भी शामी मतों में अलौकिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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