Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 16
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 102
________________ ४८४ नागरीप्रचारिणी पत्रिका का प्रामोद नहीं। मुहम्मद साहब प्रामोद-प्रिय जीव थे। प्रमदा पर उनकी विशेष ममता थी, फिर भी उनको स्त्री-पुरुष के सहजसंबंध में किसी सनातन सत्ता का संकेत नहीं मिलता था। अल्लाह के वे एक प्रपन्न सेवक थे, विरही या संभोगी कदापि नहीं। उनमें 'हाल' था, 'इलहाम' था, करामत थी, वासना थी; पर प्रेम और संगीत का उनमें निशान न था। संगीत से तो उन्हें चिढ़ थी। प्रेम एवं संगीत के अतिरिक्त सूफियों के प्रायः सभी लक्षण मुहम्मद साहब में थे। प्रेम का वासनात्मक भाव उनमें पर्याप्त था, प्रभाव उसकी अलौकिकता अथवा परिष्कार का था। मुहम्मद साहब के इसलाम से शामी जातियों में नवीन रक्त का संचार हुआ। इसलाम के उदय के पहले ही सूफीमत के सभी अंग पुष्ट हो चले थे। उनके एकीकरण की आवश्यकता थी। मुहम्मद साहब के आंदोलन से उसको तत्कालीन लाभ तो न हो सका पर आगे चलकर अमरबेलि की भाँति उसने मुहम्मदी पादप को छा लिया और उसी के रस से अपना रस-संचार करता रहा । यहा के लाड़लों में उतनी शक्ति न थी जितनी अल्लाह के कट्टर उपासकों में। फलत: मादन-भाव के भावकों को अधिक सावधानी और तत्परता से काम लेना पड़ा। कुछ बात ही विचित्र है कि सीमा सौंदर्य को उगा देती है। इसलाम के सीमित क्षेत्र में मादनभाव लहलहा उठा। युवती को परिधान मिला। परदे में प्रा जाने के कारण सूफीमत को इसलाम में प्रतिष्ठा मिली। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मुहम्मद साहब में न तो सूफीमत का उदय हुआ और न इसलाम में उसका विकास। मुहम्मद साहब के जन्म से प्रथम ही उसका उद्भव तथा विकास हो चुका था। सुलेमान के गीत सूफी साहित्य के अनमोल रत्न हैं तो सही किंतु उनमें वह आव कहाँ जो जिज्ञासा को भी शांत कर दे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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