Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 16
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 18
________________ ४०० नागरीप्रचारिणी पत्रिका प्रयोग किया है। शब्द-शक्ति के प्रकरण में भी शब्द का वैसा ही व्यावहारिक तथा व्यापक अर्थ लिया जाता है। अन्यथा प्रत्यय से लेकर पद, वाक्य तथा महावाक्य तक की शक्तियों का अंतर्भाव शब्द-शक्ति में न हो पाता। शब्द तीन प्रकार के होते हैं-वाचक, लक्षक तथा व्यंजक । मुख्य और प्रसिद्ध अर्थ को सीधे सीधे कहनेवाला शब्द वाचक कह _ लाता है। लक्षक अथवा लाक्षणिक शब्द बात शब्द के तीन भेद ५ को लखा भर देता है, अभिप्रेत अर्थ को लक्षित मात्र करता है; और व्यंजक शब्द ( मुख्य अथवा लक्ष्य अर्थ के अतिरिक्त ) एक तीसरी बात की व्यंजना करता है, उससे प्रकरण, देश, काल आदि के अनुसार एक अनोखी ध्वनि निकलती है। उदाहरणार्थ यह मेरा घर है-इस वाक्य में घर शब्द वाचक है, अपने प्रसिद्ध अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। पर सारा घर खेल देखने गया है-इस वाक्य में 'घर' उसमें रहनेवालों का लक्षक है अर्थात् यहाँ घर शब्द लाक्षणिक है। और यदि कोई अपने ऑफिसर मित्र से बात करते करते कह उठता है, 'यह घर है, खुलकर बातें करो।' तब 'घर' कहने से यह ध्वनि निकलती है कि यह ऑफिस नहीं है। यहाँ घर शब्द व्यंजक है। __ इन सभी प्रकार के शब्दों का अपने अपने अर्थ से एक संबंध रहता है। उसी संबंध के बल से प्रत्येक शब्द अपने अपने अर्थ ____ का बोध कराता है। बिना संबंध का शब्द का वा अर्थहीन होता है-उसमें किसी भी अर्थ के बोध कराने की शक्ति नहीं रहती। संबंध उसे अर्थवान बनाता है, उसमें शक्ति का संचार करता है। संबंध की शक्ति से ही शब्द इस अर्थमय जगत् का शासन करता है, लोकेच्छा का संकेत पाकर चाहे जिस अर्थ को अपना लेता है, चाहे जिस अर्थ को छोड़ देता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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