Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 16
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 25
________________ शब्द-शक्ति का एक परिचय ४०७ उन्हें चुपचाप मान लेता है। प्राप्त पुरुष बच्चे को एक पदार्थ दिखाता है और कहता है यह पुस्तक है। बालक इस शब्द के संत के अन्य सात ग्राहक ___संकेत को झटपट समझ जाता है। आगे चलकर बालक व्याकरण पढ़ता है; प्रकृति, प्रत्यय आदि का ज्ञान अर्जन करता है। अनेक शब्दों को तथा शब्दों के अनेक रूपों को सहज ही समझने लगता है। कुछ शब्दों का अर्थ वह उपमान के बल से लगा लेता है। वह गाय पहचानता है तो 'गवय' की बात सुनकर उसको गाय जैसा एक पशु समझ लेता है। वह मनुष्य का अर्थ व्यवहार से सीख चुका है। इस. लिये उपमान की सहायता से वह देव, यक्ष आदि योनियों की भी कल्पना कर लेता है। एक देव शब्द के अजर, अमर आदि अनेक पर्याय वह कोष से सीख लेता है। संदेह होने पर वह वाक्य-शेष से संकेत-निर्णय करता है। गंगा शब्द का संकेत नदी और लड़की दोनों में है पर जब इस शब्द का वाक्य में प्रयोग होता है तो दूसरे शब्दों से इसका भी अर्थ स्पष्ट हो जाता है। 'गंगा की धारा में आज कितना वेग है' इस वाक्य का गंगा शब्द स्पष्टतया नदीवाचक है। 'यव' का अर्थ 'जव' भी होता है और 'कंगुनी' का चावल भी। वाक्यशेष अर्थात् प्रसंग से इसका भी प्रर्थ स्पष्ट हो जाता है। पार्य लोगों के प्रसंग में यव का अर्थ 'जव' होता है पर म्लेच्छ लोग 'यव' से कंगुनी का चावल समझते हैं। कुछ शब्द ममझे हुए शब्दों के साथ प्राने से अनायास ही समझ में प्रा जाते हैं। जैसे 'वसंते पिक: कूजति' ( वसंत में पिक बोल रही है) इस वाक्य में पिक शब्द दूसरी भाषा' का है पर पाठक 'वसंत में बोलती है-इतना अंश समझ (.) 'पिक' छन्द संस्कृत में दूसरी भाषा से पाया है। ऐसे अन्य शब्दों का भी मीमांसा-सूत्रशावरमाप्य में उल्लेख मिलता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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