Book Title: Nag Kumar Charita
Author(s): Pushpadant Mahakavi
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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________________ 188 णायकुमारचरिउ 12 : 1. बहिरिड°-बधिरीकृतं वनं पूत्कारेण / 5. °वयणु-वचनं / वणयरहो-भिल्लस्य / पयच्छिउ-दत्तम् / 6. भुत्तुत्तरकालए-भोजनानन्तरम्; मुनिवेलानन्तरं / पयालए-पाताले / 7. अदिट्ठपुवु-अदृष्टपूर्व कदाचित् / वारि-द्वारे / 11. महाइय-महातिशययुक्तौ; महादरयुक्तो / 13. अणिट्ठियउ-न विनाशं प्रापितः / अनिजितः / . 13 : 3. ललनावर-स्त्री। 8. दण्डय-हे भीमासुर / णिरिक्खहि-अवलोकय / 10. कण्णांत्रिभुवनरति / मणिसयणु-रत्नमयी शय्या / 11. रइरायहो-रतिशोभिनः / सन्धि 6 1 : णिबंधु-न्यतिशयेन स्नेहबन्धः, त्रिभुवनरतिविपयस्नेहबन्धं कृत्वा / 3. विउलवहे- मार्गे / हरिणवहे- वधे / 4. पुच्छियउ-भिल्लो पष्टः / भच्छेरय-आश्चर्यनिलयम / णियच्छियउ-चेत् त्वया दृष्टः / 5 उवयारिहे-ममोपकारकर्तुः / 6. चविय-कथिता / 7. कंपियलिहरि-कम्पितगिरिः / पुरिसहरि-नराणां सिंहः / 8. णीसणिय-शब्दवती / सुदंसणिय-सुदर्शनिका / 10. पडिवत्ति-आदरः / 11. मई-मया निपुणमत्या / 12. हुउ मल्लउ-समीचीनं जातम् / 14. सुरसारिए-सुरीणां सारभूते / 2: 1. मयपउरे-मृगप्रचुरे / स्ययमहीहरे-विजयाखें / 4. एस्थत्थए-अत्रस्यितेन / जविउजपितः / 5. पय-जलमपि कदाचित् मुक्तम् / उल्लियउ-मिश्रितः। 6. मासुल्लउ-मांसम् / 7. सायारह-स्वाचारस्य सुष्ठु आचारयुक्तस्य / “अचामचः प्रायोऽपभ्रंशे"। साचारस्य वा सह आचारेण वर्तते इति / णिम्मच्छर-हे नागकुमार / 8. सुरसुक्खरुक्ख-कल्पवृक्ष / सुरसुक्खरू-सुरेभ्यः सौख्यं रातोति / 9. दिव्वपुरंधिगणु-देवाङ्ग नासमूह / 10. सुत्तंतियउ-श्रोत्रान्तरे कर्णमध्ये / 11. सणियडिंस्वनिकटे दृष्ट्वा / 12. विमद्दउ-कदर्थक / 3 : 1. जायरयम्बयहो–उत्पन्नरतभोगव्रतस्य / सुव्वयहो-नमिनाथतीर्थकरगणधरस्य / 2. राय -राग / 4. जोइयउ-दृष्टः / 5. मिण्णउइंदिय-इन्द्रियोत्पन्नज्ञानावरणं विदारितम् / 6. रयजल. वाहहो-पापमेघस्य। उवयरणु-उपकरणं मरणम्। 7. जमकरणु-यमकिकराः व्याधिः जरा वा / करणु-इंद्रिय / 8. ण लयउ-न गृहीतम् / मणि-रत्न / भरण-पोषणम् / 12. सो धम्मु-जगत्प्रसिद्धो जिनधर्मः। 4 : 1. अंते-अवसाने / उरु-हृदयम् / 2. उवयरइ-उपक्रियते / 3. धरइ-किं रक्षति / 4. वसइ-भवति तिष्ठति वा। ल्हसइ-गच्छति / 6. हएण-हतेन मारितेन अश्वा किं न हतः / 7. रहेहि-रथैः / रहिज्जइ-रक्षितुं न शक्यते / वहुः-वधः / रायगहु-रागपिशाचः। 9. ल्हिक्किउप्रच्छन्नो भवतु दुर्गमध्ये / एउ-एतत् / 10. पहवंतु-प्रभवत् संजायमानं मरणचिह्नम् / सेयवेयं°प्रस्वेद-शीत-रोगवेगांकितः / खयचिंधु-मरणचिह्नम् / 11. असिपाणिएण-खड्गधारा-उदकेन / पापवृक्षो वर्द्धते / दीहकरु-दीर्घशाखः / 12. तहो-पापवृक्षस्य / वंकावइ-वक्रीकरोति / 13. गहिय णिवगृहीताः नृपाः / लच्छीसिव-लक्ष्मीसौख्यानि / 14. रउरवे-सप्तमनरके / ___5 : 1. तउ-तपः। 3. ते-जितशत्रुणा / रसिउ-लम्पटः / 4. सुणियल-सुष्ठु निगड / 5. मढ़ें-हस्तिपकेन / वज्जिय-वजित / 6. ससहावे-स्वमाहात्म्येन / 9. अवयरहुं-उपकुर्मः उपकारं कुमः कस्य / आणत्तउ-आज्ञप्तः / ११.°मए-मदे / 13. हिकुमारु-नागकुमारः / 6: 1. परमीमयरु-अन्येषां भयकारि / 2. जाएँ-जातेन, गृहीतदीक्षेण / णिज्जिय-जितशत्रुणा / 3. मणि-मनसि कल्पिता / महु-मम सुदर्शनायाः / 4. भासवसणा-नाम्नी, वाञ्छापूरिका। 6. बहुजंपणिया-शत्रूणां बहुजल्प-कारिका। 7. कंकालिणिया-कंटकहस्ता। 10. विदावणिया-शत्रुनाशिका / 11. उम्मोहणिया-शत्रुकृताचैतन्यस्फेटिका / 12. उत्तारणिया-उन्नतप्रदेशात् / 13. आरोहणिया-उच्चस्थाने / 16. सरवारणिया-बाणनिषेधिका / 17. स्य-वेग, रजः / 18. बलसुंमणिया P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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