Book Title: Nag Kumar Charita
Author(s): Pushpadant Mahakavi
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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________________ - टिप्पण 195 13 : 5. धामसु-स्थानेषु / 6. णहयल-खतले सूर्यः / 7. धराधर-गिरि / 11. सयलुअर्हन्, सकल, सशरीर / णिक्कलु-सिद्धः / 13. जए-जगति / रिसिठाणाई-ऋषि-सिद्धक्षेत्राण्येव तीर्थानि / 14 : 1. तिढ़िए-लोभतृष्णया यः न त्यक्तः। दिक्खा-दीक्षा मोक्षः तेन किं कथिता। 2. णाण-ज्ञानं कथं घरति / छज्जइ-शोभते / छिज्जइ-छिद्यते / 5. अण्णे-वेदान्तिना। 7. देह जि जीउ-शरीरमेवात्मा। 8. संतउ-सत्विद्यमानम् / तो किह णज्जइ-किं तर्हि ज्ञायते / 9. विसेसुविशेषः, विशिष्टः / 10. विण्णेहिं-विज्ञः पण्डितैः / 15 : 1. वसंतु-वसन्तर्तुः / वणराइए-वनश्रेणीषु / पवियं मइ-प्रविज़म्भते तथाई लक्ष्मीमत्याम् / 5. वणिवरु-वणिजां श्रेष्ठः / धणयत्तउ-धनवान् / 6. सुहयत्तणमयणिम्महु-सुभगत्वमद. निर्मथकः / 7. रमणि-स्त्री / रमण-क्रोडायां / 9. दल-पत्रवत् / 12. तायालये-पितृगृहे / 16 : 1. कएहिं मि-कश्चित् / मणगुत्तु-मनोगुप्तः / 3. महोवहि-समुद्रः। पयंगु-सूर्यः / 4. बहुमव-उद्भवः संसारः / 5. जरामरणुमव-जन्म संसारो वा / 6. णरिंदु-नाम, राज्ञां मध्ये वा महान् / 7. समाणु-सहितः / जाणु-ज्ञाता, जाम वा। 8. णिविठु णियच्छेवि-उपविष्टं दृष्ट्वा / विणेय-नेय वस्तु / 9. इहिमि-द्वावपि / सराउ-रागयुक्तः / दोसबहत्थु-दोषरहितः / 12. तेणराज्ञा सह / परिपुण्णउ होएवि-मनसि संपूर्णो भूत्वा / 17 : 2. तियालप्पहाणे-त्रिकालप्रघाने / तिलोयप्पहाणे-त्रैलोक्यप्रधाने / 4. पुणो–पुनः / 6. हयामोहवासे-हतमोहपाशे / 7. णिऊणं-दृष्ट्वा, निरोक्ष्य / 8. सुओ-श्रुतः / पयासो-प्रकाशम् / 9. तिळोयाणमाणं-त्रैलोक्यस्वरूपम् / 11. सुरेहे-शोभने / 14. तण्हा-तृष्णा। 15. तुहीणादि दव्वा-शीतादि, हिमादीनि द्रव्याणि / 16. एल-एला। 17. कुणंत-कृतो वातः / पडावीपतनं। 20. ताओ-पिता। 21. पजालंसुमोक्खे-अग्निकिरणमोचने / 22. मणीसूर-मणिः सूर्यकान्तः / 26. पिएहि-पिब / 27. पिया-तात, हे पिता / 28. पियारेसि-स्वस्थ करोमोति / 29. रामा-रमणीयाः मनोहराः, भामाः / 32. ण ईसंति भेया-न दृश्यन्ते वस्तुभेदाः / 36. तिमत्तीतिस्रः भक्तयः देवशास्त्रगुरवः / 40. मुत्तोपएसं-मुक्तिप्रदेशं / 41. पयापंचवित्तो-पंचपदवित्तः वृत्तः युक्तः वा / 42. अयाराइवणं-अकारादिवणं / 43. सरं-अर्ह, रकारसहितं अहं इति / 18 : 2. सूरकंति-सूर्यप्रभविमाने देवो जातः / पच्चले-प्रचुरे / ठियए-स्थिते / 3. ओहएऔघे समूहे / 8. जय जय मणंतिया-देवाः सेवां कुर्वन्ति / 10. पवंचु-प्रपञ्च: उपवासादिः। 12. त्थओ-आभरण / सुदित्ति-सदृशतेजाः / पहत्थउ-व्याकुलः / 13. तुरुक्ख-शिलारस, सैलरस / जक्खकद्दमहो-कर्पूरागुरु-कस्तूरी-कक्कोलर्यक्षकईमम् / 15. तिलय-वृक्षस्य पुष्पं / 17. सुण्हानागवसू / 19 : 1. सोहणु-शोभनं / पबोहणु-प्रबोधनं, प्रशोधनं / 2. सोउ-शोकं / 4. दयसारउदयासारः / 10. सेस-अन्योपवासादिना / 11. वंसुब्मड-वंशप्रदेशप्रकट / होण-लघुशरीरा / 12. सराइय-सरागा सा। पराइय-प्राप्ता / 13. णियत्तइं-निवृत्तौ। 16. मवंतर सुन्दर-भवान्तरान् सुन्दरान् / 17. पमणंतिण-प्रभणता विधिः पृष्टः। 20 : 2. गुरु-उत्कृष्ट / सम्मगगे-समग्रे / 3. संपोसह-सम्यक् प्रकारेण / वयच्छाय-हे व्रतशोभ / 5. सो–स उपवास: / 6. णेत्थंगु-नेपथ्यांगः, नेपथ्यमाभरणम् / 9. धम्मत्थु-धर्मार्थ शृणोति / परमत्थु-मथक: धर्मः / 10. सज्झाण-स्वाध्यायः / सोचेइ-धर्मध्यानं चिन्तयन् / तम्मिजिनालये। 11. अणु-सूक्ष्म / 12. दिणु एक-उपवास दिनम्। जइमाव-यतिपरिणाम / 13. णहछेय-नखशोभा / तत्त-शरीरतप्तः / मरमत्ते-कुंकुमादि-अंगरागरहितः / अंगरागः आति-उत्पादकः / 15. सुषिसोहि-सुविशुद्धिपूर्वकम् / मयवाहु-मृगाणां व्याघ्रः। 16. दोदह वि-१२ ( बारह ) / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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