Book Title: Mugal Samrato ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 61
________________ ( 30 ) से नीचे तक सिर झुकाकर उषा काल के सुख को प्राप्त करने के लिए बैठा रहता था। अकबर ने धर्म के क्षेत्र में बहुरूपता का अनुभव किया और विभिन्न धर्मो में सत्य को पहचानने का प्रयत्न किया । जब कभी उसे समय मिलता वह वेष बदलकर योगियों, सन्तों व सन्यासियों के पास बैठकर सभी धर्मों के सत्य को जानने का प्रयास करता था। उसके हृदय में बार-बार यह सवाल उठा करता था कि जिस धर्म के पीछे लोगों में इतना आन्दोलन हो रहा है वह धर्म क्या चीज है ? और उसका वास्तविक तत्व क्या है ? वह जीवन और मृत्यु के गूढ़ रहस्यों को भी जानने का प्रयास करता था और जानना चाहता था कि ईश्वर और मनुष्य का क्या सम्बन्ध है और इस विषय के समस्त प्रश्न क्या-क्या हैं ? वह कहा करता था कि "दर्शनशास्त्री का मुझ पर जादू का सा असर होता है कि अन्य सब बातों को छोड़कर मैं इस विचार की ओर झुक जाता हूँ चाहे मुझे आवश्यक कामों की उपेक्षा करनी पड़े"" अकबर का विचारशील मन कभी भी यह स्वीकार करने को तैयार नहीं था कि केबल इस्लाम धर्म ही सच्चा धर्म है उसकी जिज्ञासु और सत्यान्वेषण की प्रवृत्ति, गहन आध्यात्मिक चिन्तन मनन तथा नवीन विचार धाराओं ने उसे इस निष्कर्ष पर ला दिया कि प्रेम, उदारता, दया व सहिष्णुता के सिद्धान्त ही सत्य धर्म के तत्व हैं। अबुल फजल ने भी लिखा है कि जीवन भर उसकी खोजबीन का यह परिणाम हुआ कि वह विश्वास करने लग था कि सभी धर्मों में समझदार लोग होते हैं और वे स्वतन्त्र विचारक भी होते हैं जब सत्य सभी धर्मों में है तो 1. From a feeling of thankfulness for his past success he would sit many a morning alone in prayer and meditation, on a large flat stone of an old building which lay near the place in a lonely spot, with his head bent over his chest and gathering the bliss of early hours of down. 1. अलबदायूनी डब्ल्यू. एच. लॉ द्वारा अनुदित भाग 2 पृष्ठ 203 - 2. Discourses an philosophy have such a charm for me that they distract me from all else, and If forcibly restrain myself from listening to them, lost the necessary duties of the hour should be neglected. 2. आइन-ए-अकबरी एच. एस. जैरेट द्वारा अनुदित भाग 3 पृष्ठ 433 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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