Book Title: Mugal Samrato ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri
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परिशिष्ट १
हीरविजयसूरिजी को अकबर बादशाह का फरमान
[ नम्बर 1]
( ईश्वर के नाम से ईश्वर बड़ा है )
मालवा के मुत्सद्दियों को विदित हो कि चुकि हमारी कुछ इच्छायें इसी बात के लिए हैं कि शुभाचरण किये जायें और हमारे श्रेष्ठ मनोरथ एक ही अभिप्राय अर्थात् अपनी प्रजा के मन को प्रसन्न करने और आकर्षण करने के लिये नित्य रहते हैं।
इस कारण जब कभी हम किसी मत व धर्म के ऐसे मनुष्यों का जिक्र सुनते हैं जो अपना जीवन पवित्रता से व्यतीत करते हैं, अपने समय को आत्म ध्यान में लगाते हैं और जो केवल ईश्वर के चिन्तवन में लगे रहते हैं तो उनकी पूजा की बाह्य रीति को नहीं देखते हैं और केवल उनके चित्त के अभिप्राय को विचार के उनकी संगति करने के लिए हमें तीव्र अनुराग होता है और ऐसे कार्य करने की इच्छा होती है जो ईश्वर को पसन्द हो इस कारण हरिभज सूर्य (हीरविजयसूरि) और उनके शिष्य जो गुजरात में रहते हैं और वहां से हाल ही में यहां आये हैं । उनके उग्रतप और असाधारण पवित्रता का वर्णन सुनकर हमने उनको हाजिर होने का हुक्म दिया है और वे आदर के स्थान को चूमने की आज्ञा पाने से सन्मानित हुए हैं। अपने देश को जाने के लिए विदा (रूखसत) होने के पीछे उन्होंने निम्नलिखित प्रार्थना की
यदि बादशाह जो अनाथों का रक्षक है यह आज्ञा दे दें कि भादों मास के बारह दिनों में जो पजूसर (पजूषण) कहलाते हैं और जिनको जैनी विशेषकर के पवित्र समझते हैं कोई जीव उन नगरों में न मारा जाये जहां उनकी जाति रहती हैं, तो इससे दुनियां के मनुष्यों में उनकी प्रशंसा होगी बहुत से जीव बध होने से बच जायेगें और सरकार का यह कार्य परमेश्वर को पसन्द होगा और चूंकि जिन मनुष्यों ने यह प्रार्थना की हैं वे दूर देश से आये हैं और उनकी इच्छा हमारे धर्म
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