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प्रमाण भी हो । यदि तुम अमुक बात को मानते हो तो इसका कारण क्या है ? इस तरह अविश्वास बढ़ते-बढ़ते इबादत खाने में तीन विरोधी दल हो गये। एक मख-दूम-उल-मुल्क की उपाधि से विभूषित शेख अब्दुल्ला सुल्तानपुरी के निर्देशन में और दूसरा अब्दुन्नबी के नेतृत्व में । ये कट्टर सुन्नी मुसलमानों के दल थे। उल्माओं के ये दोनों नेता आपस में एक-दूसरे को बुरा भला कहकर झगड़ते थे । मखदुम-उल-मुल्क ने अब्दुन्नबी पर खिजखां सरवानी और मीरबख्श को उनके धार्मिक विश्वासों के लिए अन्याय से मरवा डालने का आरोप लगाया। तीसरा दल इब्राहीम शेख मुबारक और उसके पुत्र फैजी व अबुल फजल तथा नवीन लोगों का था । ये तीनों भी परस्पर कुफ्र और बेइज्जती की बातें करते थे। धमन्धि शुन्नियों ने शेख मुबारक पर धर्म भ्रष्ट होने और नवीन धार्मिक पद्धति चलाने का दोषारोपण कर उसे मृत्यु दण्ड दे दिया गया पर वह बच कर भाग गया। इस पर अबुल फजल ने इन सुन्नियों के गुट की भ्रांतियां, उनकी कथनी करनी में भेद आदि को उदाहरणों से स्पष्ट किया और अब्दुन्नबी की पोल खोलना शुरू किया। उसने बताया कि अब्दुन्नबी ने हाजियों को दिया जाने वाला धन स्वयं ले लिया और यह फतवा दिया कि हज करने से पुण्य के स्थान पर पाप होगा, क्योंकि मक्का जाने के दोनों मार्ग संकट ग्रस्त हैं इन सभाओं में एक दूसरे को नीचा दिखाने के विलक्षण प्रश्न किये जाते थे ।
मौलाना मुहम्मद हुसैन लिखते हैं कि "हाजी इब्राहीम सरहिन्दी बड़े झगडालू और चकमा देने वाले व्यक्ति थे उन्होंने एक दिन सभा में मिर्जा मुफलिस से पूछा कि "मूसा" शब्द का "सीगा" (क्रिया का वचन पुरुष आदि) क्या है ? और इसकी व्युत्पत्ति क्या है ? मिर्जा यद्यपि विद्या और बुद्धि की सम्पत्ति से बहुत सम्पन्न थे, पर इस प्रश्न के उत्तर में मुफलिस ही निकले बस फिर क्या था सारे शहर में धूम मच गई कि हाजी ने मिर्जा से ऐसा प्रश्न किया जिसका वे कोई उत्तर ही न दे सके और हाजी ही बहुत बड़े विद्वान हैं। उसी अवसर पर एक दिन काजीजादा लश्कर से कहा कि तुम रात को सभा में नहीं आते ? उसने निवेदन किया कि हुजूर आऊ तो सही पर वहां हाजी जी मुझसे पूछ बैठे कि ईसा का "सीगा' क्या है तो मैं क्या जबाब दूंगा । यह दिल्लगी बादशाह को बहुत पसन्द आई थी।
1. इसमें असम्बद्धता यह है कि सीगा केवल क्रिया में होता है, संज्ञा में नहीं __होता और “मूसा" संज्ञा है। 2. अकबरी दरबार रामचन्द्र वर्मा पहला भाग पृष्ठ 72-73
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